बूंदी

संरक्षण नहीं मिला तो सिमट गया रोजगार का ताना-बाना

प्रसिद्धी पाने के बाद भी नैनवां का दरी पट्टी उद्योग दम तोड़ रहा है। अब न दरी-पट्टी उद्योग रहा और न बुनकर। बस पुरानी यादें बनकर रह गया।

बूंदीOct 04, 2024 / 06:00 pm

पंकज जोशी

नैनवां. पहले ऐसे बुनी जाती थी नैनवां की दरी। (फाइल फोटो)

नैनवां. प्रसिद्धी पाने के बाद भी नैनवां का दरी पट्टी उद्योग दम तोड़ रहा है। अब न दरी-पट्टी उद्योग रहा और न बुनकर। बस पुरानी यादें बनकर रह गया। प्रसिद्धी इतनी है कि आज भी लोग नैनवां की दरी तलाश करने पहुंच जाते है। एक समय था कि नैनवां दरी-पट्टी उद्योग से सैकड़ों लोगों का रोजगार बना हुआ था।
कस्बे की हर गली व तालाबों की पाल पर आम व बरगदों के नीचे दिनभर दरी-पट्टी बुनने के लिए लगे घोड़ी-मकोड़ों पर दिनभर खटा-खट गूंजती रहती थी। दरी-पट्टी उद्योग का दम टूटने के साथ खटाखट की आवाज भी शान्त हो गई। पूरे देश में पहचान बनाने के बाद भी सरकार की ओर से संरक्षण नहीं मिलना ही दरी-पट्टी का ताना-बाना बिखर सिमट गया। दरी बुनने का ताना-बाना अब बुनकरों के घरों में शोपीस बनकर इधर-उधर पड़े है। बुनकरों व बुनाई के व्यवसाय को बढावा देने के लिए सरकार भले ही खूब ढिंढोरा पिटती रही हो, लेकिन प्रसिद्धि मिलने के बाद भी नैनवां के दरी-पट्टी उद्योग को सरंक्षण नहीं दे पाई।
दो दशक पूर्व तक इस धंधे से कई परिवार जुड़े हुए थे। जहां पहले बुनकरों के मोहल्लों व वृक्षों की छांव में जगह-जगह घोड़ी-मकोड़ों पर दरी-पट्टी की बुनाई के ताने-बाने की खटा-खट चला करती थी। संरक्षण नहीं मिल पाने से बुनकर परिवारों का इस धंधे से ऐसा मोह भंग हुआ कि अब न बुनकर रहे और न ही दरी-पट्टी उद्योग।

समिति से मिलता था भुगतान
पहले नैनवां में टोंक खादी ग्रामोद्योग समिति ही कच्चा माल देकर दरी-पट्टी व डोरिया तैयार करवाती थी। समिति के माध्यम से ही बुनाई का भुगतान मिलता था। समिति के सामने कच्चे माल की समस्या पैदा हुई तो उसने बुनकरों के रोजगार से हाथ खींच लिया। उसके बाद भी नैनवां की दरी की पहचान बनाए रखने के लिए अधिकांश बुनकरों ने अपने स्तर पर ही कच्चे माल का जुगाड़ कर अपने धंधे के ताने-बाने को टूटने से रोकने का प्रयास भी किया, लेकिन हाथ करघा पर मशीनीकरण के कब्जे से कामयाब नहीं हो पाए। दो दशक पूर्व तक इस धंधे से कई परिवार जुड़े हुए थे। बुनाई का इतना काम मिलता था कि फुर्सत ही नही मिलती थी। समय रहते संरक्षण मिल जाता तो यह रोजगार का ताना-बाना सिमटने से बच जाता।

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