प्रदेश में करीब 1 करोड़ आठ लाख कार्ड प्राप्त हो चुके, जिसमें से 77 लाख 24 हजार 65 कार्ड का वितरण हुए। ऐसे में 18 लाख 34 हजार 832 कार्डों का वितरण बाकी बताया। कार्ड वितरण करने के मामले में प्रदेश में टोंक जिला अग्रणी रहा। 92.99 प्रतिशत अंक के साथ 16 हजार 344 कार्ड वितरण करना शेष रह गया, जबकि जैसलमेर अंतिम पायदान पर रहा। इस जिले को 35 हजार 169 कार्ड वितरित करने बताए। जनआधार कार्ड लगभग हर सरकारी योजना में महत्वपूर्ण कर दिया। ऐसे में इस कार्ड के बिना इस कोरोना काल में दर्जनों परिवारों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला रहा।
इसे सरकारी सिस्टम की लापरवाही की कहा जाएगा कि सैकड़ों परिवारों तक अभी कार्ड नहीं पहुंचे। पिछली सरकार ने भामाशाह कार्ड बनाए थे। जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री की फोटो लगी थी। इसके चलते प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही आधार कार्ड की तर्ज पर भामाशाह कार्ड को जन आधार कार्ड में तब्दील कर दिया। कार्ड बदलने के बाद जिन लोगों के भामाशाह कार्ड बने हुए थे, उनके नए कार्ड बनवाने की जिम्मेदारी सरकार की थी, लेकिन आमजन की जनआधार कार्ड की आस कागजों में उलझी रह गई। यह कार्ड ई-मित्रों के माध्यम से नि:शुल्क बनाए जाने थे।
गलत पते के चलते हुई चूक
जानकार सूत्रों ने बताया कि कई कार्डों में त्रुटियां सामने आई। गलत पते के चलते अन्य जिलों के जनआधार कार्ड बूंदी पहुंच गए। बारां, सीकर, चितौड़, झुंझुंनूं व भरतपुर जिलों के कार्ड लापरवाही के चलते पैक होकर बूंदी आ गए। यही नहीं बूंदी के कार्ड भी अन्य जिलों में पहुंच गए।
भामाशाह में परिवार की पहचान, इसमें प्रत्येक परिवार का अलग अंक
भामाशाह कार्ड में परिवार के प्रत्येक सदस्य की पहचान थी। जिसमें महिला का परिवार का मुखिया बनाया था। एक ही नंबर डिजिट हुआ करते थे। इस कार्ड से भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना सहित कई योजनाएं जुड़ी हुई थी। भामाशाह कार्ड में अंग्रेजी वर्णमाला के आधार पर काम होता था, जबकि जनआधार कार्ड में अंकों के अनुसार काम होगा। इस कार्ड में प्रत्येक परिवार के सदस्य का अलग अंक दिया गया।
सात माह बाद भी जनता से दूर
प्रदेश में सरकार ने आते ही भामाशाह कार्ड को नया रूप देने की योजना बनाई। इसको जनआधार कार्ड में बदला गया। इसे बनाने के लिए निजी कम्पनी से करार किया गया। अब भामाशाह कार्ड बंद हो गए, नए बने नहीं, इससे सर्वाधिक प्रभाव चिकित्सा सेवाओं में दिखा। लोग निजी चिकित्सालयों में फिर से लुटने शुरू हो गए। अधिकारियों ने इसे लेकर गंभीर नहीं रहने से सात माह बाद भी सैकड़ों लोगों को कार्ड नहीं मिले।