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सर्वेक्षण की बांट जोह रहे पुरा सभ्यता के अवशेष

जिले के नैनवां उपखंड के सीसोला गांव में प्राचीन सभ्यता अवशेष मौजूद हैं। गांव के एक टीले पर मिले इन अवशेषों में पाषाण की गोल मुद्रा जैसी आकृतियां, छोटे शिवलिंग, धूप दान, मृदा पात्र समेत अन्य आकृतियां मिली हैं। हालांकि काल निर्धारण इनके सर्वेक्षण के बाद ही किया जाना संभव है।

बूंदीJul 02, 2021 / 09:40 pm

पंकज जोशी

सर्वेक्षण की बांट जोह रहे पुरा सभ्यता के अवशेष

सर्वेक्षण की बांट जोह रहे पुरा सभ्यता के अवशेष
सीसोला में मिले प्राचीन सभ्यता के अवशेष, बनास संस्कृति से है साम्यता
इतिहासविदों के अनुसार करीब 1500 से 2000 वर्ष पुराने हैं अवशेष
जजावर. जिले के नैनवां उपखंड के सीसोला गांव में प्राचीन सभ्यता अवशेष मौजूद हैं। गांव के एक टीले पर मिले इन अवशेषों में पाषाण की गोल मुद्रा जैसी आकृतियां, छोटे शिवलिंग, धूप दान, मृदा पात्र समेत अन्य आकृतियां मिली हैं। हालांकि काल निर्धारण इनके सर्वेक्षण के बाद ही किया जाना संभव है। इतिहासविद् श्यामसुंदर शर्मा मानते हैं कि ये अवशेष कम से कम 1500 से 2 हजार वर्ष प्राचीन हैं।
ये अवशेष मिले
पाषाण से निर्मित गोल मुद्रा, अष्टकोणीय मुद्रा, छोटे शिवलिंग, धूप दान, काले व सलेटी मिट्टी के मृदापात्र, खिलौने जैसी आकृतियां प्राप्त हुई है। एक टीले पर प्राचीन परकोटा भी मौजूद है। साक्ष्यों के आधार पर यह गांव 18वीं शताब्दी में दोबारा बसा है।
आस्था को करती है उजागर
इतिहास के व्याख्याता हुकम चंद जैन के अनुसार, भारतीय संस्कृति में विभिन्न समाजों में मन्नत स्तूप स्थापित करने की परम्परा रही है। सीसोला में जो अवशेष मिले हैं, इनमें अधिकतर को पत्थर तराश कर बनाया है। यह देखने में मन्नत सामग्री लग रही है। नीमका थाना निवासी पुरातत्व विद् मदनलाल मीना भी इसका अध्ययन कर रहे हैं।
किया जा रहा है अध्ययन
जानकारी के अनुसार, 1998-1999 में पहली बार खुदाई में प्राचीन अवशेष का पता चला था। इन पर शोध करने वाले कोटा निवासी डॉ. अरविंद सक्सेना इन अवशेषों को हड़प्पाकालीन मानते हैं। डॉ.सक्सेना ने इन साक्ष्यों की जानकारी अल्बर्ट हॉल म्यूजियम, जयपुर व कोटा में भी दी है। 2002 में इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में डॉ. सक्सेना का सीसोला पर शोधपत्र पढकऱ पुरातत्वशास्त्री डॉ. सोनेवाना ने इस सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति के समकालीन बताया।
यह अवशेष कम से कम 1500 से 2 हजार वर्ष प्राचीन हैं। बनावट, आकार व कला के आधार पर ये बनास संस्कृति से मेल खाते हैं। दक्षिणी राजस्थान में इस सभ्यता का विस्तार रहा है। कार्बन डेटिंग प्रणाली से इनकी आयु का निर्धारण हो सकता है।
श्याम सुन्दर शर्मा, इतिहासविद्
यह जिस तरह से नजर आ रहे हैं, पूर्वमध्यकालीन लग रहे हैं। इनका तुलनात्मक अध्ययन करके ही आयु काल गणना की जा सकती है। जल्द इनका सर्वेक्षण करवाएंगे। नमाणा में ताम्र संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
उमराव सिंह, वृत्त अधीक्षक, पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग

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