आपको बता दें कि खुर्जा में पॉटरी उद्योग लगभग 600 साल पुराना बताया जाता है। पॉटरी उद्योग में विशेषज्ञता की वजह से खुर्जा देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी एक विशेष पहचान रखता है। दिल्ली से महज 90 किमी की दूरी पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के खुर्जा शहर में स्थित पाॅटरियों में चीनी-मिट्टी के बर्तन और सजावटी वस्तुएं, बिजली के फ्यूज सर्किट, इन्सुलेटर, प्रयोगशाला के उपकरण, हवाई जहाज, टरबाइन, राॅकेट, न्यूक्लियर फ्यूजन, अंतरिक्ष तकनीक सहित दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली कारों में इस्तेमाल होने वाले कई कलपुर्जे भी बनाये जाते हैं। लेकिन 600 साल पुराना बताया जाने वाला पॉटरी उद्योग सरकारी अनदेखी और उपेक्षा की वजह से बन्द होने के कगार पर है।
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मुजफ्फरनगर में फिर नफरत फैलाने का दौर शुरू, हिन्दूवादी नेता के बयान पर मची खलबलीपिछले कुछ वर्षों में पॉटरी उद्योग में आई तेज़ी से गिरावट की सबसे ज्यादा मार इन पॉटरी उद्योगों में काम करने वाले हजारों मजदूरों के परिवार पर पड़ी है। धीरे-धीरे बंद होते पॉटरी उद्योगों की वजह से यहां काम करने वाले मजदूरों पर हर समय दो जून की रोटी का संकट मंडराता नज़र आता है। इन पॉटरी उद्योगों में अपने हाथ की कला से देश विदेश में जादू बिखेर चुके कारीगर और मजदूरों की माने तो उद्यमी उन्हें उनकी मज़दूरी का समय से पैसा नहीं दे पाते हैं और इसके अलावा ये लोग कुछ और करना भी नहीं जानते हैं, जिसके चलते आज इन लोगों को दो जून की रोटी जुटाने के लिए कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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छह वर्ष के बच्चे की छत से गिरकर हो गई मौत तो माता-पिता ने उठाया ऐसा कदम जो बन गई मिसालबाहर राज्यों से यहां मज़दूरी करने आए कुछ ठेकेदार और मजदूरों का तो यहां तक दावा है कि जो दिहाड़ी उन्हें 4 साल पहले मिलती थी। आज भी वो उतनी ही दिहाड़ी में गुजारा कर रहे हैं, क्योंकि पॉटरी संचालक अब इन लोगों से इससे ज़्यादा दिहाड़ी पर काम कराने को तैयार नहीं हैं, इन लोगों का यहां तक कहना है कि इससे पहले की सरकारों के कार्यकाल में पॉटरी उद्योग का इतना बुरा हाल नहीं था, पहले पॉटरी उद्यमी इन्हें समय पर पैसा दे दिया करते थे लेकिन, अब ऐसा नहीं हो पा रहा है।