यह भी पढ़ें- अनलॉक-1: 8 जून को प्रसिद्ध दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर के साथ खुलेंगे इन प्राचीन मंदिरों के कपाट उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के चलते देशभर में लागू हुए लॉकडाउन ने पूरे देश में बेरोजगारों की इतनी बड़ी खेप खड़ी कर दी है कि देश का कोई कोना इससे अछूता नहीं रह गया है। लॉकडाउन के चलते न केवल असंगठित क्षेत्र के मजदूर बेरोजगार हुए, बल्कि कोरोना काल में शिक्षित वर्ग पर भी बेरोजगारी की ख़ूब मार पड़ी है। लॉकडाउन के दौरान बड़े शहरों से अपने गांवो की ओर कूच करने वाले मज़दूरों को सरकार की मनरेगा योजना से बहुत आस बंधी है। बुलंदशहर में पड़ताल के दौरान जो सच सामने आया, वह न सिर्फ़ हैरान करने वाला है, बल्कि यह साफ कर देने वाला है कि लॉकडाउन ने लोगों के सामने कितना बड़ा आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है।
पड़ताल के दौरान पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार होने वाले पढ़े-लिखे लोग भी मनरेगा के तहत मज़दूरी करने को मजबूर हैं। बुलंदशहर जिले की जुनेदपुर ग्राम पंचायत में चल रही मनरेगा की साइट पर कई ऐसे बेरोजगार मिले, जिन्होंने माता-पिता का नाम रोशन करने के लिए यूं तो खूब पढ़ाई की, लेकिन कोरोना की वजह से इनका परिवार भी इस कदर आर्थिक दिक्कतों से जूझने लगा कि मजबूरन इन लोगों को अपनी डिग्री-डिप्लोमा अलमारी में रखकर फावड़ा उठाना पड़ा है।
मनरेगा के तहत चकरोड बना रहे बीए पास सुरजीत सिंह, बीबीए पास सतेंद्र कुमार और एमए पास रोशन कुमार ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वे लोग अलग-अलग शहरों में निजी कंपनियों नौकरी कर रहे थे। जबकि कुछ हाल फिलहाल में ही नौकरी की तलाश में शहर गए थे, लेकिन इस बीच देश में हुए लॉकडाउन ने न सिर्फ उनकी तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया, बल्कि पूरी तरह बेरोजगार कर दिया है। लॉकडाउन के कारण अब उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। उनके घर में इतने पैसे भी नहीं हैं कि वह अपना व अपने परिवार का पेट पास सकें। इसलिए मजबूरन वह शिक्षित होने के बावजूद गांव में मनरेगा के तहत मज़दूरी कर रहे हैं।
वहीं, ग्राम प्रधान वीरेंद्र कुमार सिंहऔर ग्राम पंचायतसचिव लोकेश कुमार ने बताया कि इनके अलावा दर्जनों ऐसे युवक हैं, जो डिग्री-डिप्लोमाधारी होने के बावजूद मजबूरी में महज 200 रुपये की दिहाड़ी पाने के लिए हर रोज़ मनरेगा में मज़दूरी के लिए आवेदन कर रहे हैं, जिन्हें नियमानुसार कार्य देने की योजना तैयार की जा रही है। इस तरह हमारी पड़ताल में साफ हो गया कि शहरों से पलायन करके आए शिक्षित बेरोजगारों भी मनरेगा के तहत दिहाड़ी करके जीवन यापन करने को मजबूर हैं।