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पोते ने पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाइयां बेचीं, अब मकान पर नजर

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ( Ustad Bismillah Khan ) के मकान को संग्रहालय में तब्दील करने की चर्चा कई साल से चल रही है। इस विचार को जल्द से जल्द हकीकत का जामा पहनाने की जरूरत है। कुछ वारिसों की गिद्ध दृष्टि से इस अनमोल विरासत को इसी तरह बचाया जा सकता है।

Aug 22, 2020 / 01:38 am

पवन राणा

पोते ने पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाइयां बेचीं, अब मकान पर नजर

पोते ने पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाइयां बेचीं, अब मकान पर नजर

-दिनेश ठाकुर
वाराणसी में हाल ही भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ( Ustad Bismillah Khan ) के मकान को ढहाने की कोशिश चिंता पैदा करती है और चौंकाती भी है। जब किसी ‘भारत रत्न’ के उम्रभर के योगदान को भुलाकर उसकी अनमोल धरोहर पर हथौड़े चलाए जाएं तो समझा जा सकता है कि दूसरे दिवंगत कलाकारों के मकान कितने सुरक्षित हैं। दुनिया छोडऩे वाले कलाकारों को कितनी जल्दी बिसरा दिया जाता है। जमाने की इस रिवायत पर कमर जलालवी के शेर हैं- ‘दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले/ कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को/ दबा के कब्र में सब चल दिए दुआ न सलाम/ जरा-सी देर में क्या हो गया जमाने को।’ शहनाई के जादुई सुरों से भारत का नाम दुनियाभर में चमकाने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की 21 अगस्त को चौदहवीं बरसी पर इस खबर ने उनके कद्रदानों को राहत दी कि वाराणसी नगर निगम ने उनके मकान की तोडफ़ोड़ की कार्रवाई रुकवा दी है। लेकिन यह कार्रवाई भविष्य में फिर सिर नहीं उठाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। जब खानदान के चिराग ही आग लगाने पर आमादा हों तो घर को कब तक बचाया जा सकता है? उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के पांच में से चार बेटों का देहांत हो चुका है। उनके पोतों की नजर उनके मकान पर है। वे इसे तोड़कर कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स खड़ा करना चाहते हैं। जमीन के भाव भावनाओं पर भारी पड़ रहे हैं।

वाराणसी, जिसे पहले बनारस कहा जाता था, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के लिए जन्नत से कम नहीं था। वे कहा करते थे कि दूसरे शहरों में तो रस बनाना पड़ता है, बनारस के तो नाम में ही ‘रस’ ‘बना’ हुआ है। यहां गंगा किनारे घाट पर बैठ कर शहनाई बजाने में उन्हें किसी कंसर्ट से ज्यादा आत्मीय आनंद महसूस होता था। गंगा मैया से उन्हें शहनाई में उन सुरों को फूंकने की ताकत मिलती थी, जो देश-विदेश में जादू जगाते थे। उनकी शहनाई का जादू राजेंद्र कुमार की फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ और सत्यजीत रे की ‘जलसाघर’ में भी छन-छनकर महसूस हुआ था। अफसोस, उनके पोते इस जादू से बेखबर हैं। याद आता है कि चार साल पहले उस्ताद के मकान में रखीं पांच बेशकीमती शहनाइयां (इनमें चार चांदी की थीं) और दूसरी नायाब चीजें रहस्यमय ढंग से गायब हो गई थीं। उनके पोतों ने चोरी का हल्ला मचाया, लेकिन बाद में एक पोते को ही गिरफ्तार कर पुलिस ने सनसनीखेज खुलासा किया कि उसने उस्ताद की शहनाइयां बाजार में बेच दी थीं और अब उनका कोई नामो-निशान बाकी नहीं है, क्योंकि चंद ग्राम चांदी के लिए उन्हें पिघलाया जा चुका है।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के मकान को संग्रहालय में तब्दील करने की चर्चा कई साल से चल रही है। इस विचार को जल्द से जल्द हकीकत का जामा पहनाने की जरूरत है। कुछ वारिसों की गिद्ध दृष्टि से इस अनमोल विरासत को इसी तरह बचाया जा सकता है।

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