जब सियासत को लेकर भिड़ गए थे दो दोस्त राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा, जानें कौन पड़ा था किस पर भारी
बॉलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना और एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा दोनों बेहद अच्छे दोस्त थे। लेकिन दोनों प्यार से साथ-साथ रहते, सियासत को लेकर आमने सामने आ गए। और फिर…
नई दिल्ली: बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) और एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughan Sinha) दोनों बेहद अच्छे दोस्त थे। राजेश शत्रुघ्न को अपना छोटा भाई तक कहते थे। लेकिन दोनों प्यार से साथ-साथ रहते, सियासत को लेकर आमने सामने आ गए। इसके बाद क्या हुआ, आइये जानते हैं।
राजीव के कहने पर राजेश ने ज्वाइन की राजनीति 1976 के बाद सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्में पीटने लगी थीं। दरअसल इस दौरान अमिताभ की फिल्में हर अभिनेता की फिल्मों पर भारी पड़ने लगी थीं। बावजूद इसके करीब एक दशक राजेश खन्ना ने मुंबई पर्दे पर एकतरफा राज किया था। 1990 में राजेश खन्ना ने फिल्मों से संन्यास ले लिया। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर राजेश खन्ना ने राजनीति ज्वाइन कर ली। राजनीति में आने के बाद राजेश खन्ना कांग्रेस पार्टी से कुछ चुनाव लड़े, जिसमें वो जीते भी और हारे भी। राजेश खन्ना 1991-1996 तक नई दिल्ली लोकसभा सीट से बतौर सांसद बने रहे। बाद में राजनीति से मोहभंग होने के चलते राजनीति छोड़ दी थी।
‘काका’ के सामने आडवाणी हारते-हारते बचे 1991 का लोकसभा चुनाव जब लाल कृष्ण आडवाणी ने गांधीनगर और नई दिल्ली लोकसभा सीट से पर्चा भरा। वहीं, कांग्रेस ने आडवाणी को हराने के लिए राजेश खन्ना को नई दिल्ली लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। तब कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी यह आशा नहीं थी कि राजेश खन्ना इस चुनाव को इतना रोमाचंक बना देंगे।
नई दिल्ली की सड़कें और गलियों में राजेश खन्ना का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा था। नई दिल्ली के युवाओं में राजेश की दीवानगी देखकर आडवाणी को लगा बाजी हाथ से निकल सकती है। इस लोकसभा चुनाव में आडवाणी को अपनी प्रतिष्ठा बचाने लिए चुनाव के अंतिम चार-पांच दिनों तक खुद इस लोकसभा क्षेत्र की गलियों घूमघूम कर जनसंपर्क करना पड़ा था।
आडवाणी यह चुनाव मात्र 1758 वोटों से जीते थे कहते हैं आडवाणी के सामने जनता में राजेश खन्ना की लोकप्रियता देखकर कांग्रेस के बड़े नेताओं के माथे पर पसीने छूटने लगे। इसके बाद राजेश को खन्ना को हराने के लिए कांग्रेस के अंदर भीतरघात का दौर शुरू हो गया। तो, दूसरी तरफ भाजपा के रणनीतिकारों ने मतदाताओं को मन बदलने के लिए परंपरागत चुनावी हथकंडे अपनाए। लिहाजा राजेश खन्ना वो चुनाव हार गए। आडवाणी यह चुनाव मात्र 1758 वोटों से जीते थे।
अटल के समय शत्रुघ्न सिंहा ने ज्वाइन की राजनीति शत्रुघ्न सिंहा ने अटल बिहारी वाजपेयी के समय पर 1984 में भाजपा ज्वाइन की थी। पार्टी ने उनकी लोकप्रिय और दमदार आवाज को देखते हुए स्टार प्रचारक बनाया था। साल 1991 में जब लाल कृष्ण आडवानी लोकसभा चुनाव में गुजरात के गांधीनगर और नई दिल्ली दोनों सीट जीत गए थे। नई दिल्ली सीट से आडवानी कुछ वोटों से राजेख खन्ना से जीते थे। आडवानी को जहां 93,662 वोट मिले थे, वहीं राजेश खन्ना को 92,073 वोट मिले थे। दोनों की हार जीत में कोई बड़ा अंतर नहीं थी। इसलिए आडवानी ने दिल्ली की सीट छोड़ दी और गांधी नगर के सांसद बन गए।
लोकसभा उपचुनाव में राजेश शत्रुघ्न आमने-सामने 1992 में फिर से लोकसभा उपचुनाव हुआ और अब राजेश खन्ना के सामने भाजपा की ओर से शत्रुघ्न को उतारा गाया। इस दौरान जनता दल से जयभगवान जाटव और निर्दलीय प्रत्याशी फूलन देवी भी अपनी किस्मत आजमा रही थी। इस बार इन सबके बीच नई दिल्ली की जनता ने राजेश खन्ना को चुनाव जीता दिया। राजेश खन्ना भारी वोटो से शत्रुघ्न को हराया। राजेश खन्ना ने 101625 पाकर 28,256 वोटों से शत्रुघ्न को हराया था।
चुनाव में खो गई राजेश खन्ना और शत्रुघ्न की दोस्ती इस चुनाव के चक्कर में राजेश खन्ना और शत्रुघ्न की दोस्ती टूट गई। चुनाव के दौरान राजेश ने शत्रुघ्न को दल बदलु तक कह दिया था। वहीं, शत्रुघ्न ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मुझे अपने दोस्त के सामने चुनाव लड़ने का पछतावा हुआ था। इसके लिए उन्होंने कई बार राजेश से माफी भी मांगी थी।