ये वाक्या है साल 1942 का । उस समय लता जी की उम्र महज तेरह-चौदह साल की थी। लता जी को फिल्म का एक सीन शूट करना था जिसमें मां-बेटी के बीच संवाद का एक दृश्य था। मां कुछ गुस्से में थी और बेटी को लगातार डांटे जा रही थी। डांटते-डांटते उसे इतना गुस्सा आया कि उसने बेटी के गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया। बेटी का रोल निभा रही लता जी को इतना जोरदार थप्पड़ पड़ा कि वो सेट पर गिर पड़ी। उनके कान से खून बहने लगा। सेट पर मानो अफरा-तफरी मच गई । उनके बाद डॉक्टर को बुलाया गया और दवा-गोली देकर लता जी को आराम करने के लिए घर भेज दिया गया।
जी हां लता मंगेशकर कभी फिल्में भी किया करती थीं और इसका कारण था पिता दीनानाथ मंगेशकर की असामयिक मृत्यु के बाद उन्हें अपना ही नहीं, अपने चार छोटे बहन-भाइयों का भी पेट पालना था। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों से खेलने या पढ़ने-लिखने की उम्र में ऐक्टिंग करने के लिए कैमरे के सामने खड़ा कर दिया गया था। लेकिन उस समय भी लता जी का पहला प्यार संगीत ही हुआ करता था।