शास्त्रीय और लोक संगीत का सुरीला संगम
वसंत देसाई संगीत के जादूगर थे। शायद इसलिए कि उन्होंने बाकायदा उस्ताद आलम खान और उस्ताद इनायत खान से शास्त्रीय संगीत की तालीम लेकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा था। मराठी थे, तो मराठी लोक संगीत पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी ही। उनकी धुनों में शास्त्रीय और लोक संगीत का जो सुरीला संगम है, मिट्टी की जो महक है, वह कानों से दिल तक और दिल से रूह तक सफर करती है। ‘झनक झनक पायल बाजे’ के ‘जो तुम तोड़ो पिया’ और ‘नैन सो नैन नाही मिलाओ’ सुनिए या ‘गूंज उठी शहनाई’ के ‘तेरे सुर और मेरे गीत’, ‘दिल का खिलौना हाय टूट गया’, ‘जीवन में पिया तेरा साथ रहे’ या फिर ‘दो आंखें बारह हाथ’ का ‘सैयां झूठों का बड़ा सरताज निकला’, हर रचना में ऐसी मीठी शीतलता है, जो मन को उत्तेजित नहीं करती, सुकून-सा बरसाती है।
कह दो कोई न करे यहां प्यार…
फिल्म संगीत में गूंज (इको साउंड) वसंत देसाई की देन है। उन्होंने सबसे पहले ‘परबत पे अपना डेरा’ (1944) में पहला गूंजता गीत ‘जो दर्द बनके जमाने पे छाए जाते हैं’ (जोहरा बाई) रचा था। मोहम्मद रफी की आवाज वाले ‘कह दो कोई न करे यहां प्यार’ (गूंज उठी शहनाई) में उन्होंने इस गूंज को और मुखर किया। अशोक कुमार से उन्होंने ‘आशीर्वाद’ में ‘रेलगाड़ी’ गवाया, जिसे भारत का पहला रैप गीत माना जाता है।
इक था बचपन..
‘गूंज उठी शहनाई’ में वसंत देसाई ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई के साथ उस्ताद अब्दुल हलीम जफर खान के सितार और उस्ताद अमीर खान के स्वर का बड़ी सूझ-बूझ से इस्तेमाल किया। उनके दूसरे सदाबहार गीतों में ‘निर्बल से लड़ाई बलवान की’ (तूफान और दीया), निगाहें लड़ते ही दिल का मचलना (नाजनीं), ए काले बादल बोल (दहेज), जिसे ढूंढती फिरती है मेरी नजर (शीशमहल), चरण तुम्हारे फूल हमारे (नरसिंह अवतार), बादलों बरसो नैन की कोर से (सम्पूर्ण रामायण) मुखड़ा देख ले प्राणी (दो बहन), इक था बचपन, झिर-झिर बरसे सावनी अंखियां (आशीर्वाद) और ‘बोले रे पपीहरा’ (गुड्डी) शामिल हैं।
लिफ्ट हादसे ने छीनी जिंदगी
असीमित प्रतिभा के बाद भी वसंत देसाई को फिल्मों में सीमित मौके मिले, क्योंकि मायानगरी की जोड़-तोड़ की गणित वे कभी नहीं समझ पाए। एक गैर-फिल्मी रिकॉर्डिंग के सिलसिले में 22 दिसम्बर, 1975 को वे लिफ्ट में दाखिल हो रहे थे कि अचानक लिफ्ट चल पड़ी और एक अनमोल संगीतकार का सफर हमेशा के लिए थम गया।