इसके बाद उन्होंने साल 1921 में आई मूक फिल्म सुरेख हरण से अपने करियर की शुरुआत की। इस फिल्म में उन्हें बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला था।
इसके बाद तो मानों शांताराम ने फिल्मों की बोछार कर दी। कहा जाता है की शांताराम की सर्वाधिक चर्चित फिल्म दो आंखें बारह हाथ थी जो की साल 1957 में प्रदर्शित हुई थी। यह एक साहसी जेलर की कहानी है, जो छह कैदियों को बिल्कुल नए तरीके से सुधारता है। बता दें ये उन दिनों की एतिहासिक फिल्म बन गई। फिल्म को राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक सम्मान दिया गया था। साथ ही फिल्म ने बर्लिन फिल्म महोत्सव में सिल्वर बियर सहित कई विदेशी पुरस्कार जीता।
बता दें बतौर निर्देशक उन्होंने फिल्म नेताजी पालकर में पहली बार काम किया था। इसके बाद उन्होंने राजकमल कला मंदिर की स्थापना की और इसके बैनर तले फिल्में बनाने लगे। कहा जाता है कि उन्होंने अपने स्टूडियो में आधुनिक सुविधाएं जुटायी थीं।
उन्होंने डॉ. कोटनिस की अमर कहानी, झनक झनक पायल बाजे, नवरंग, दुनिया ना माने जैसी कई शानदार फिल्मों का निर्माण किया। आपको जानकर हैरानी होगी की शांताराम ही वे पहले शख्स थे जिन्होंने हिंदी फिल्मों में मूविंग शॉट का सबसे पहले प्रयोग किया था। चंद्रसेना फिल्म में उन्होंने पहली बार ट्राली का प्रयोग किया।
कहा जाता है की संगीत शांताराम की फिल्मों का एक और मजबूत पक्ष होता था। संगीत उनकी फिल्मों में चार चांद लगा देता था। मिसाल के रूप में झनक झनक पायल बाजे को देखा जा सकता है। वे संगीतकार ना सही लेकिन अच्छे संगीत को परखने की खूबी रखते थे इसलिए अपनी हर फिल्म में कहानी से ज्यादा मधुर संगीत को तवज्जू देते थे। उनका मानना था की संगीत इतना खूबसूरत होना चाहिए की इंसान एक बार फिल्म की कहानी को भूल जाए लेकिन फिल्म का संगीत के बोल उसे मुंह जबानी याद रह जाए। बता दें लोगों के बीच सिनेमा की सही पहचान बनाने वाले फिल्मकार वी. शांताराम ने तारीख 30 अक्टूबर 1990 को इस दुनिया से विदा ली।