बैंडिट रानी (1994)
‘बैंडिट रानी’ जीवनी फिल्म फूलन देवी के जीवन पर आधारित है, एक डरावनी महिला जिसने उत्तरी भारत में बैंडिट्स के गिरोह का नेतृत्व किया। फूलन एक गरीब कम जाति परिवार से संबंधित था। कम उम्र में ही उसके गलत हुआ। इसके बाद उसने अपराध का जीवन लिया। बाफ्ता-विजेता शेखर कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म की अपमानजनक भाषा, यौन सामग्री और नग्नता के अत्यधिक उपयोग के लिए आलोचना की गई थी।
काम सूत्र: प्यार की कहानी (1996)
काम सूत्र: मीरा नायर द्वारा निर्देशित एक कथा का प्यार भारत में प्रतिबंधित था, जिसमें फिल्मों की यौन सामग्री का कहना है कि भारतीय संवेदनाओं के लिए बहुत कठोर था। काम सूत्र की किताब पर विचार करते हुए एक विडंबनात्मक सुझाव भारत में पैदा हुआ और खरीद के लिए आसानी से उपलब्ध है। विरोधियों ने फिल्म को अनैतिक और अनैतिक के रूप में लेबल किया, लेकिन इसे व्यापक आलोचना मिली।
फायर (1996)
1996 में आई फिल्म ‘फायर’ दीपा मेहता के कामों को दुनिया में काफी सराहा जाता है। इस फिल्म में शबाना आजमी और नंदिता दास को लैसबियन बताया गया था इस फिल्म से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा और फिल्म का शिवसेना और कई हिंदू संगठनों ने विरोध किया इसके चलते फिल्म काफी विवाद में घिरी रही और आखिरकार सेंसर को इसे बैन करना पड़ा।
उर्फ प्रोफेसर (2000)
निखिल आडवाणी की उर्फ प्रोफेसर फिल्म इसे भी सेंसर बोर्ड ने अपने चंगुल में लिया। इसके जानेमाने सितारे मनोज पाहवा अंतरा माली और शर्मन जोशी जैसे सितारे थे लेकिन फिल्म में अश्लील और अभद्र भाषा होने के कारण सेंसर बोर्ड ने इसे बैन किया।
पैंच (2003)
अनुराग कश्यप की फिल्म ‘पैंच’ भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे विवादास्पद हैं। उन्होंने बोल्डिंग विषयों से कभी भी झुकाया नहीं है, जो भारतीय समुदाय में कई लोगों के साथ अच्छी तरह से नहीं बैठ सकते हैं। उनका निर्देशन पैंच, जो कि अपहरण की साजिश में उलझ गए पांच बैंड सदस्यों के जीवन के चारों ओर घूमता है। वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित, फिल्म में चित्रित दवाओं, हिंसा और (लिंग) को भारतीय दर्शकों के लिए अनुचित माना जाता था।
पिंक मिरर (2003)
भारत जैसे देश में समलैंगिकता का मुद्दा हमेशा ही संवेदशील रहा है। इसी पर आधारित वर्ष 2003 में रिलीज हुई फिल्म ‘पिंक मिरर’ को बैन कर दिया गया। पश्चिमी देशों की तरह भी अब भारत में समलैंगिक लोग खुल कर सामने आ रहे हैं लेकिन फिल्म जब बनकर तैयार हुई तब ऐसा दौर नहीं था।
वाटर (2005)
दीपा मेहता की फिल्म ‘वाटर’ में विधवा महिलाओं के जीवन से जुड़ी स्याह दुनिया को दिखाया गया है। इस फिल्म को अकादमी अवार्ड 2007 के लिए नोमिनेट भी किया गया। लेकिन विवादों में आने कारण इसे बैन कर दिया गया।
परजानिया (2007)
डायरेक्टर राहुल ढोलकिया की गुजरात दंगे पर आधारित फिल्म ‘परजानिया’ को गुजरात में बैन कर दिया गया। इस फिल्म को ज्यादातर लोगों ने सराहा भी तो कुछ ने आलोचना भी किया।
‘गांडू’ (2010)
अगर आपको ‘गांडू’ नाम की एक फिल्म से कुछ और उम्मीद है, तो आप जरुर निराश होंगे। बंगाली फिल्म एक रैप संगीत था जिसने अपने ओरल सेक्स दृश्यों और नग्नता के लिए बहुत सुर्खियां बटोरी। ब्लैक एंड वाइट प्रारूप में शूट की गई, फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि इसमें भारतीय संवेदनशीलताओं का उल्लंघन किया गया था।
इंशाअल्लाह, फुटबॉल (2010)
‘इंशाअल्लाह फुटबॉल’ 2010 में आई फिल्म आतंकवाद के चलते कश्मीरी लोगों की दुख तकलीफ परेशानी दुनिया के सामने आए इस लक्ष्य को लेकर यह फिल्म बनाई गई थी। यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म कश्मीरी लड़के पर बनी थी। इसमें लड़के का सपना है कि विदेश जाकर फुटबॉल खेलें, लेकिन उसे देश से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिलती इसके कारण उसके पिता का आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े रहने का होता है। लेकिन कश्मीर का मसला हमेशा से ही उलझा रहा है जिसकी वजह से सेंसर ने इसे रिलीज ही नहीं होने दिया।