फिल्मों से दूर होते ही घट गए दीवाने
सुरैया के प्रति दीवानगी का आलम धर्मेंद्र तक सीमित नहीं था। ‘इस शहर में तुम जैसे दीवाने हजारों हैं’ की तर्ज पर एक दौर में इस गायिका-अभिनेत्री ने जाने कितने दिलों पर जादू कर रखा था। वह विभाजन से पहले का दौर था। मेरिन ड्राइव (मुम्बई) पर जिस कृष्णा महल में सुरैया रहती थीं, उसके बाहर उनकी एक झलक के लिए रोज भीड़ जुटती थी। इस भीड़ में कई दिन नौजवान जुल्फीकार अली भुट्टो भी शामिल रहे, जो बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। एक बार जालंधर से एक साहब बैंड, बाजा, बाराती लेकर कृष्णा महल पहुंच गए थे। जिद थी कि उन्हें सुरैया से शादी करनी है। पुलिस ने हवालात में डालकर उनके जोश-जिद को ठंडा किया। वक्त का सितम यह कि फिल्मों से दूर हो जाने के कई साल बाद 31 जनवरी, 2004 को जब सुरैया ने आखिरी सांस ली, कृष्णा महल में चंद चेहरे नजर आए। वहां जुटने वाली भीड़ काफी पहले गायब हो चुकी थी। अहमद फराज का शेर है- ‘कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे / याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।’
देव आनंद के साथ अधूरी प्रेम कहानी
हिन्दी सिनेमा में लता मंगेशकर के उदय से पहले दो गायिकाओं की धूम थी- नूरजहां और सुरैया। दोनों अभिनेत्रियां भी थीं। महबूब खान की ‘अनमोल घड़ी’ में दोनों साथ थीं। इस फिल्म में सुरैया का गीत है- ‘सोचा था क्या, क्या हो गया/ अपना जिसे समझे थे हम/ अफसोस वो अपना न था।’ कुछ साल बाद यह मिसरे उनकी जिंदगी की हकीकत बन गए। ‘विद्या’ की शूटिंग के दौरान देव आनंद के साथ उनकी प्रेम कहानी का आगाज हुआ। इसके बाद यह जोड़ी सात और फिल्मों (अफसर, जीत, शायर, सनम, जीत, दो सितारे, नीली) में साथ आई। लेकिन प्रेम कहानी सात फेरों तक नहीं पहुंच सकी। देव आनंद की कल्पना कार्तिक से शादी के बाद सुरैया ने फिर कहीं दिल नहीं उलझाया। ताउम्र कुंवारी रहीं।
‘मिर्जा गालिब’ में उरुज पर रहीं
प्रेम में विफलता को सुरैया ने अभिनय और गायन की ताकत बनाया। आखिरी दौर की फिल्मों में उनके अभिनय में ज्यादा संजीदगी, गहराई और संवेदनशीलता महसूस होती है। खास तौर पर सोहराब मोदी की ‘मिर्जा गालिब’ में वह उरुज (शीर्ष बिंदु) पर नजर आईं। महान शायर गालिब की इस बायोपिक की कहानी सआदत हसन मंटो ने, जबकि पटकथा-संवाद राजिन्दर सिंह बेदी ने लिखे थे। सुरैया फिल्म में गालिब (भारत भूषण) की प्रेमिका चौदहवीं बेगम के किरदार में थीं। गालिब की ‘आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक’, ‘रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई न हो’ और ‘ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता’ जैसी रूहानी गजलें गाते हुए सुरैया ने हर्फ-हर्फ अपने दर्द को अभिव्यक्ति दी। दो नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली इस फिल्म में शानदार अभिनय के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी सुरैया की तारीफ की थी।