डिम्पल के लिए यादें ही सरमाया
कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा को शौर्य और बहादुरी के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया। जाहिर है, ‘शेरशाह’ में उनकी और डिम्पल की प्रेम कहानी के साथ कारगिल युद्ध पर भी फोकस रहेगा। इस युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा की तबीयत नासाज थी। आला अफसर चाहते थे कि वह आराम करें, लेकिन वह पॉइंट 4875 का मिशन पूरा करने चल दिए। इसी इलाके में एक साथी जवान की जान बचाते हुए उनकी जान गई। डिम्पल के लिए उनकी यादें ही सरमाया हैं। पिछले साल एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘इतने साल बाद भी मैंने किसी दिन खुद को उनसे जुदा नहीं पाया। लगता है वह कहीं पोस्टिंग पर हैं। मुझे यकीन है कि हम फिर मिलेंगे।’
कारगिल पर आधा दर्जन से ज्यादा फिल्में
कारगिल युद्ध पर आधा दर्जन से ज्यादा फिल्में बन चुकी हैं। इनमें जे.पी. दत्ता की ‘एल.ओ.सी. कारगिल’ (2003) शामिल है। हिन्दी में टीवी फिल्म ‘तमस’ (4.58 घंटे) के बाद यह सबसे लम्बी फिल्म (4.15 घंटे) है। इन दोनों फिल्मों से पहले यह रेकॉर्ड राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ (4.4 घंटे) के नाम था। शाहिद कपूर और सोनम कपूर की प्रेम कहानी ‘मौसम’ के पसमंजर में कारगिल युद्ध है। जिन दिनों कारगिल युद्ध चल रहा था, वर्ल्ड कप क्रिकेट का बुखार भी चढ़ा हुआ था। यह विषमता रवीना टंडन की ‘स्टम्प्ड’ की थीम बनी। फिल्म तल्ख अंदाज में इस सच को पर्दे पर पेश करती है कि जब युद्ध के मैदान में हमारे जवान जान की बाजी लगा रहे थे, एक बड़ी आबादी की दिलचस्पी क्रिकेट के मैदान में उतरने वाले खिलाडिय़ों में ज्यादा थी।
लाल फीताशाही, भ्रष्टाचार और विवाद
ओम पुरी और रेवती ने ‘धूप’ में कारगिल युद्ध के शहीद कैप्टन अनुज नैयर के मां-बाप का किरदार अदा किया। यह फिल्म उस लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार की खबर लेती है, जो शहीदों के परिजनों की पीड़ा की आग में घी का काम करते हैं। ऋतिक रोशन की ‘लक्ष्य’, अजय देवगन और बॉबी देओल की ‘टैंगो चार्ली’, जाह्नवी कपूर की ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ भी कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनीं। वायुसेना की आपत्तियों के कारण ‘गुंजन सक्सेना’ विवादों में रही। यह वायुसेना की पायलट गुंजन सक्सेना की बायोपिक है। सेवानिवृत्त विंग कमांडर नमृता चंडी ने यह फिल्म बनाने वालों पर ‘रचनात्मक आजादी के नाम पर झूठ बेचने’ का आरोप लगाया। उनके शब्दों में, ‘मैंने हेलीकॉप्टर पायलट के तौर पर 15 साल के कॅरियर में कभी इस तरह की बदसलूकी का सामना नहीं किया, जैसा फिल्म में दिखाया गया। सिनेमाई लाइसेंस और क्रिएटिविटी की आजादी ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी फिल्मों पर लागू की जा सकती है। इसे भारतीय वायुसेना के स्थापित नियमों और प्रोटोकॉल के दायरे में नहीं लाया जा सकता। फिल्म ने हम सभी को नीली वर्दी में बहुत खराब तरीके से दिखाया गया।’