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जब बिना वीज़ा के राज कपूर पहुंच गए रूस, फिर वहां की सरकार और लोगों ने उनके साथ जो किया उससे वो हो गए हैरान

बॉलीवुड इंडस्ट्री के ऐसे कई कलाकार है जिनका डंका सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में है। उन्हीं में से एक बॉलीवुड के ऐसे कलाकार रहे हैं जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं और वो एक्टर कोई और नहीं बल्की हिंदी जगत के शौमेन राजकपूर हैं।

Feb 22, 2022 / 05:06 pm

Archana Keshri

जब बिना वीज़ा के राज कपूर पहुंच गए रूस, फिर वहां की सरकार और लोगों ने उनके साथ जो किया उससे वो हो गए हैरान

जब बिना वीज़ा के राज कपूर पहुंच गए रूस, फिर वहां की सरकार और लोगों ने उनके साथ जो किया उससे वो हो गए हैरान

शोमैन राज कपूर के निधन को 29 साल से ज्यादा हो गए लेकिन वह अब भी रूस में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के बादशाह हैं। रूस में युवाओं से लेकर कई पीढ़ियां राज कपूर और उनके सिनेमा को भली भांति जानती हैं और उन्हें बॉलीवुड का नंबर एक हीरो मानती है। 1950 के दशक में राज कपूर फिल्म इंडस्ट्री का वो नाम थे, जिनके पीछे हर कोई दीवाना था। राज कपूर की दीवानगी ऐसी थी कि न सिर्फ़ भारत बल्कि रूस तक उनके हुनर का कायल था, और आज भी है।
उनका वहां इतना बोलबाला था, इस बात का आप इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं जब वो वहां बिना वीजा के जा पहुंचे थे। ये बात तब की है जब राज कपूर फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के लिए रशियन सर्कस से बात कर रहे थे। उस वक्त वो लंदन में थे, फिर उन्हें आनन-फानन में मॉस्को जाना पड़ा। उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं थी की वो अपना वीजा लाना भूल गए हैं। मगर उनके अप्रवासी होने के बावजूद भी सोवियत के अधिकारियों ने उन्हें बिना किसी परेशानी के देश में आने दिया था।
राज कपूर के बेटे ऋषि कपूर ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान अपने पिता के साथ हुई इस घटना का जिक्र करते हुए बताया था, “वे बाहर निकले और टैक्सी का इंतज़ार करने लगे… तब तक लोगों ने उन्हें पहचान लिया कि राज कपूर मॉस्को आए हुए हैं। उनकी टैक्सी आई और वे बैठ गए। पर अचानक उन्होंने देखा कि टैक्सी आगे बढ़ने की बजाय ऊपर की ओर उठ रही है। लोगों ने उनकी कार को अपने कंधों पर उठा लिया था।”
अब आप सोच रहे होगें कि राज कपूर रुस में इतने लोकप्रिय क्यों हुए? तो चलिए आपके इस सवाल का जवाब हम आपको देते हैं। हम वहां से शुरू कर सकते हैं, जब सबसे पहले बॉलीवुड की फिल्में, खासकर हिंदी फिल्में, सोवियत यूनियन पहुंची। अक्सर दो देशों के बीच का राजनैतिक माहौल, वहां के कल्चरल एक्सचेंज में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।
भारत ने स्वतंत्रता के पहले, अप्रैल 1947 में ही रूस के साथ अच्छे संबंध बना लिए थे। 1950 में ये संबंध और बेहतर हो गए, जब प्रधानमंत्री नेहरू ने कोरिया युद्ध के दौरान अमेरिका के दबाव में आने से मना कर दिया था। भारत के इस निर्णय ने सोवियत यूनियन को काफी प्रभावित किया। पर इस रिश्ते में मोड़ तब आया जब क्रूर तानाशाह स्टेलिन का 1953 में निधन हो गया।
इसके बाद, थोड़े नरम दिल माने जाने वाले निकिता सरगेयेविच ख़्रुश्चेव ने सत्ता संभाली और उन्होंने स्टेलिन की कट्टर नीतियों से सबको राहत दी। उनके आ जाने से भारत को भी फायदा हुआ। निकिता सरगेयेविच ख़्रुश्चेव के आने से सबसे पहले कल्चरल इम्पोर्ट जैसे कि फिल्में सोवियत जाने लगीं और साल 1954 में राज कपूर की ‘आवारा’ को सोवियत में एक नया मार्किट मिल गया। और इस तरह से हिंदी फिल्में, खासकर राज कपूर, देव आनंद व दिलीप कुमार की फिल्में, रूस का रुख करने लगी।
वैसे तो रूस में रिलीज होने वाली पहली बॉलीवुड फिल्म ‘छिन्नमूल’ थी, मगर राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ ने रूसी दर्शकों को हिंदी सिनेमा का दीवाना बनाया था। मगर उनकी फिल्म ‘आवारा’ ने उन्हें रूस में वो शौहरत दिलाई जो आज तक किसी और बॉलीवुड स्टार को वहां नहीं मिली। फिल्म का गाना ‘मेरा जूता है जापानी’ वहां पर काफी प्रसिद्ध हुआ। गाना रूसियों को इतना बढ़िया लगा कि बच्चे, बड़े और बूढ़े ही नहीं सरकारी लोग भी इसके दीवाने हो गए।

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दरअसल, अनजाने में ही सही पर उनके इस गाने ने रूस को जापान से ऊपर बताया था। गाने के जो बोल हैं जैसे: “मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिश्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी”। इसमें जापनी जूते को पैरों में बताया गया और रूसी टोपी को सिर पर रखा गया. उस समय जापान और रूस के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे। ऐसे में जब रूस ने देखा कि राज कपूर ने अपने गाने में जापान को नीचे बताया है तो सब ने उन्हें कॉमरेड मान लिया।
हालांकि, राज कपूर का कहीं भी किसी देश को नीचा दिखाने का अंदेशा नहीं था पर परिस्थितियों के आगे वो भी हार गए। उस दिन से राज कपूर रूस सरकार के भी पसंदीदा कलाकार बन गए।

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