आपको बतादें राजकपूर (Raj Kapoor’s films) की दो ऐसी फिल्में भी थीं जो कांस फिल्म फेस्टीवल में काफी चर्चा में रही थी। राज कपूर को फिल्मों में स्थापित करने के लिए उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने काफी मेहनत की थी। ये कम लोगों को ही पता होगा, राज कपूर के करियर की शुरुआत में उन्हें पड़े थप्पड़ ने ही उनकी किस्मत बदल दी थी।
उन दिनों ये काफी प्रचलित था कि जो भी बॉम्बे टॉकीज में थप्पड़ खाया, सफलता ने उसके कदम चूमे। और राजकपूर के साथ भी ऐसा ही हुआ। ये बात उन दिनों की है जब राजकपूर (Raj Kapoor’s films) फिल्म “ज्वारभाटा” कि शूटिंग कर रहे थे, फ़िल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर केदार शर्मा हर शॉट को सावधानी से फिल्मा रहे थे, ऐसे में जब भी क्लैप के साथ शूट शुरू होता राजकपूर कैमरे के सामने आकर बाल ठीक करने लगते इसकी वजह से हर बार रीटेक लेना पड़ता दो-तीन बार ऐसा करने के बाद असिस्टेंट डायरेक्टर केदार शर्मा ने राज कपूर को एक थप्पड़ जड़ दिया।वो दिन था और जीवन के अंतिम दिनों तक राजकपूर ने फिर इस गलती को नहीं दोहराई। बादमें वही केदार शर्मा ने जब फ़िल्म “नीलकमल” की शुरुआत की तो उसमें मधुबाला के साथ राज कपूर की भी कास्टिंग की थी। लोग कहते हैं कि वही एक थप्पड़ था जिसने राजकपूर की किस्मत को बदल कर रख दिया था।
ज़मीन से लगाव था महान कलाकार को
वैसे तो राज कपूर पर पूरी किताब भी लिखी गई है लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो हर किसी को प्रेरित करती हैं, जैसे राज कपूर के बारे में यह कहा जाता है कि वे कभी बिस्तर पर नहीं सोते थे, एक इंटरव्यू में उनकी बेटी ऋतु नंदा(Raj Kapoor’s daughter Ritu Nanda) ने बताया था कि, “राज कपूर जब कभी होटल में ठहरते थे, तो वो होटल के पलंग से गद्दा खींच कर जमीन पर बिछाया करते थे।एक बार तो इसके लिए उन्हें परेशानी भी उठानी पड़ी थी। वो लंदन के मशहूर हिल्टन होटल में रुके तो ऐसा करने पर होटल मैनेजमेंट ने पहले तो उन्हें वॉर्निंग दी लेकिन अपने इरादों के पक्के राज कपूर ने फिर वही किया जो उनका सिद्धांत था, तब होटल मैनेजमेंट ने उनपर जुर्माना लगाया। वे पांच दिन तक होटल में ठहरे और हर दिन जुर्माना देते रहे लेकिन ज़मीन पर गद्दा बिछाना नहीं छोड़े।”
नेशनल अवॉर्ड लेते समय पड़ा दौरा, और थम गईं सांसें-
राज कपूर को सन 1988 में दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में ‘दादा साहेब फाल्के’ पुरस्कार(‘Dadasaheb Phalke’ Award) से सम्मानित किया जा रहा था। लेकिन अस्वस्थता की वजह से वो मंच तक नहीं जा सके तो तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमण(President Venkataraman) ने प्रोटोकॉल को छोड़ते हुए खुद मंच से नीचे उतर कर राज कपूर के पास जा कर उन्हें सम्मानित किया था। इस दौरन दौरा पड़ने की वजह से ऑडिटोरियम से राज कपूर को सीधे दिल्ली के एम्स ले जाया गया जहां उनकी हालत और बिगड़ती गई और वो कोमा में चले गए, अंत में 2 जून, 1988 को करीब रात 9 बजे उन्होंने अंतिम सांसें लीं, और फ़िल्म इंडस्ट्री का एक जगमगाता सितारा हमेशा के लिए अस्त हो गया।