इंदौरी साहब के रग-रग में बसता था इंदौर
इंदौरी का जन्म जनवरी 1950 को इंदौर में रिफअत उल्लाह साहब के घर हुआ था। उनके पिता रिफअत उल्लाह 1942 में देवास के सोनकच्छ से इंदौर आकर बस गए थे। इंदौरी ने इंदौर के नूतन स्कूल में पढ़ाई की और इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से स्नातक किया। उन्होंने 1975 में भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में एमए पास किया और 1985 में भोज विश्वविद्यालय से उर्दू में मुशायरा नामक थीसिस के लिए उन्हें पीएचडी से सम्मानित किया गया। शायर होने के साथ-साथ राहत इंदौरी एक कुशल खिलाड़ी भी थे। वे हाईस्कूल और कॉलेज की फुटबॉल और हॉकी टीमों के कप्तान भी थे।
19 साल की उम्र में सुनाई पहली शायरी
उन्होंने कॉलेज के दिनों में ही शेरों शायरी शुरू कर दी थी। पहला शेर 19 साल की उम्र में सुनाया था। घर की आर्थिक तंगी के कारण राहत इंदौरी को कम उम्र में ही साइन पेंटर का काम करना पड़ा। उन्होंने फिल्मों के पोस्टर पर भी काम किया। कुछ समय तक इंदौरी ने मुंबई में गीतकार के तौर पर भी काम किया। हालांकि उनके काम को काफी सराहना मिली, लेकिन 90 के दशक में वे अपने गृहनगर इंदौर लौट आए। इंदौरी ने त्रैमासिक पत्रिका ‘शाखें’ (शाखाएं) का दस सालों तक संपादन किया। उन्होंने अपनी सात काव्य पुस्तकों को प्रकाशित और संपादित किया और चार दशकों से अधिक समय तक देश में काव्य संगोष्ठियों में एक लोकप्रिय चेहरा रहे। इंदौरी की ‘नज़्म’ ‘सरहदों पर बहुत तनाव है क्या’ और ‘किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है’ सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) विरोधी लोगों के बोल रहे।