वर्ष 1976 नसीरूद्दीन के सिने कॅरियर में अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी भूमिका और मंथन जैसी सफल फिल्म प्रदर्शित हुई। दुग्ध क्रांति पर बनी फिल्म ‘मंथन’ में नसीरूद्दीन के अभिनय ने नए रंग दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म के निर्माण के लिए गुजरात के लगभग पांच लाख किसानों ने अपनी प्रति दिन की मिलने वाली मजदूरी में से दो-दो रुपए फिल्म निर्माताओं को दिए और बाद में जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई तो यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई।
वर्ष 1977 में अपने मित्र बैंजमिन गिलानी और टॉम आल्टर के साथ मिलकर नसीरूद्दीन शाह ने मोटेले प्रोडक्शन नामक एक थियेटर ग्रुप की स्थापना की जिसके बैनर तले सैमुयल बैकेट के निर्देशन में पहला नाटक ‘वेटिंग फॉर गोडोट’ पृथ्वी थियेटर में दर्शको के बीच दिखाया गया। वर्ष 1979 में प्रदर्शित फिल्म ‘स्पर्श’ मे नसीरूद्दीन के अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। इस फिल्म में अंधे व्यक्ति की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। चेहरे के भाव से दर्शकों को सबकुछ बता देना नसीरूद्दीन शाह की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए। इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।
वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘आक्रोश’ नसीरूद्दीन शाह के सिने कॅरियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। गोविन्द निहलानी निर्देशित इस फिल्म में नसीरूद्दीन शाह एक ऐसे वकील के किरदार में दिखाई दिए जो समाज और राजनीति की परवाह किए बिना एक ऐसे बेकसूर व्यक्ति को फांसी के फंदे से बचाना चाहता है। हालांकि इसके लिए उसे काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वर्ष 1983 में नसीरूद्दीन शाह को सई परांजपे की फिल्म ‘कथा’ में काम करने का अवसर मिला। फिल्म की कहानी मे कछुए और खरगोश के बीच दौड की लड़ाई को आधुनिक तरीके से दिखाया गया था।
वर्ष 1983 में नसीर के सिने कॅरियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘जाने भी दो यारो’ प्रदर्शित हुई। कुंदन शाह निर्देशित इस फिल्म में नसीरूद्दीन शाह के अभिनय का नया रंग देखने को मिला। इस फिल्म से पहले उनके बारे में यह धारणा थी कि वह केवल संजीदा भूमिकाएं निभाने में ही सक्षम है लेकिन इस फिल्म उन्होंने अपने जबरदस्त हास्य अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वर्ष 1985 में नसीरूद्दीन के सिने कॅरियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘मिर्च मसाला’ प्रदर्शित हुई। फिल्म ‘मिर्च मसाला’ ने निर्देशक केतन मेहता को अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाई थी। यह फिल्म सामंतवादी व्यवस्था के बीच पिसती औरत की संघर्ष की कहानी बयां करती है।
अस्सी के दशक के आखिरी वर्षो में नसीरूद्दीन शाह ने व्यावसायिक सिनेमा की ओर भी अपना रूख कर लिया। इस दौरान उन्हें ‘हीरो हीरा लाल’, ‘मालामाल’ ,’जलवा’ और ‘त्रिदेव’ जैसी फिल्मों में काम करने का अवसर मिला जिसकी सफलता के बाद नसीरूद्दीन को व्यावसायिक सिनेमा में भी स्थापित कर दिया। नब्बे के दशक में नसीर ने दर्शकों की पसंद को देखते हुए छोटे पर्दे का भी रूख किया और वर्ष 1988 में गुलजार निर्देशित धारावाहिक ‘मिर्जा गालिब’ में अभिनय किया। इसके अलावा वर्ष 1989 में ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक में उन्होंने मराठा राजा शिवाजी की भूमिका को जीवंत कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में उन्होंने स्वयं को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में 1994 में प्रदर्शित फिल्म ‘मोहरा’ में वह खल चरित्र निभाने से भी नहीं हिचके। इस फिल्म में भी उन्होंने दर्शकों का मन मोहे रखा। इसके बाद उन्होंने ‘टक्कर’, ‘हिम्मत’ ,’चाहत’,’ राजकुमार’ , ‘सरफरोश’ और ‘कृष’ जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाकर दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया।
नसीरूद्दीन शाह के सिने कॅरियर में उनकी जोड़ी स्मिता पाटिल के साथ काफी पसंद की गई। अब तक तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके है। इन सबके साथ ही नसीरूद्दीन शाह तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए है। फिल्म के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए वह भारत सरकार की ओर से पदमश्री और पदमभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किए जा चुके है। नसीरूद्दीन शाह ने तीन दशक लंबे सिने कॅरियर में 200 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है। नसीरउद्दीन साह आज भी उसी जोशोखरोश के साथ फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय है।