मनोज बाजपेयी, मिट्टी से जुड़े एक ऐसे एक्टर जो स्कूल की गर्मी की छुट्टियों में अपने पिता के साथ खेतों पर काम करते थे। बोर्डिंग स्कूल से घर लौटकर अपने पिता का हाथ बंटाते और खेती की बारीकियां सीखते थे। पिता किसान थे लेकिन बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे ताकि बच्चे बड़े होकर कुछ बने। मनोज बाजपेयी को उनके पिता डॉक्टर बनाना चाहते थे।
मुंबई में सालों तक संघर्ष किया मनोज बाजपेयी के लिए मुंबई की ज़िन्दगी आसान नहीं थी। वे 5 दोस्तों के साथ किराये के चॉल में रहते थे और काम के लिए दर-दर भटकते। एक बार एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने उनकी फ़ोटो फाड़ दी। एक ही दिन में उन्होंने तीन प्रोजेक्ट्स भी गंवा दिए। मनोज बाजपेयी को पहला शॉट देने के बाद गेट आउट तक सुनना पड़ा। न उनकी ‘हीरो जैसी शक्ल’ थी और न ही कोई गॉडफ़ादर। कई दिन वे भूखे सोते और कई बार वड़ा पाव तक के पैसे नहीं होते। 1993 से 1997 तक मनोज बाजपेयी ने मुंबई के तमाम छोटे-बड़े स्टूडियो के चक्कर काट लिए। चार साल संघर्ष के बाद उन्हें महेश भट्ट की टीवी सीरीज़ में रोल मिला, और एक एपिसोड के 1500 रुपये तनख्वाह मिली। 1998 में सत्या के साथ राम गोपाल वर्मा ने उन्हें मौका दिया और बाजपेयी का सिक्का पलटा। मनोज बाजपेयी ने सत्या (1998), शूल (1999), पिंजर (2003), गैंग्स ऑफ़ वासेपुर (2012), अलीगढ़ (2016) जैसी बेहतरीन फ़िल्में और द फ़ैमिली मैन जैसी उम्दा सीरीज़ में अभिनय किया है।
मनोज के बारे में हुई थी ये भविष्यवाणी मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) के जन्म के साथ ही उनकी कुंडली बनवाई गई और कुंडली देखते ही ज्योतिषी ने बता दिया कि मनोज की राह क्या है। मनोज के पिता राधाकांत बाजपेयी ने बताया था, “हमारे बेतिया में पंचानंद मिश्रा नाम के एक ज्योतिषी थे। उन्होंने मनोज की कुंडली देखने के बाद बताया था कि ये लड़का काफी नाम करेगा। उन्होंने उसी वक्त बता दिया था कि ये लड़का या तो नेता बनेगा या अभिनेता। दोनों में जिस क्षेत्र में भी जाएगा, ये नाम करेगा।”