उन्होंने आरंभिक शिक्षा स्कॉटिश चर्च कॉलेजिएट स्कूल से पूरी की इसके पश्चात स्कॉटिश चर्च कॉलेज तथा विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। मन्ना डे ने पहली बार अपने चाचा मशहूर संगीतकार कृष्णाचंद्र डे के साथ सन 1942 में मुंबई में कदम रखा और सरगम के सुरों का सफर शुरू किया।
1950 का साल उनके लिए नई उम्मीदों भरा रहा जब फिल्म मशाल में मन्ना डे को अकेले गाने का मौका मिला। 1952 में उन्होंने मराठी और बांग्ला फिल्मों के लिए अपनी आवाज दी। जो गाना मन्ना डे आसानी से गा लेते थे, वही रफी-किशोर के लिए कठिन होते थे
मन्ना डे ने लोगों के दिलों में अपनी आवाज से ऐसी छाप छोड़ी कि लोग ये तक कहने को मजबूर हो गए कि जो गाना मन्ना डे आसानी से गा लेते हैं मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के लिए उन गानों को आवाज देना आसान नहीं होगा।
मन्ना डे ने लोगों के दिलों में अपनी आवाज से ऐसी छाप छोड़ी कि लोग ये तक कहने को मजबूर हो गए कि जो गाना मन्ना डे आसानी से गा लेते हैं मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के लिए उन गानों को आवाज देना आसान नहीं होगा।
अपने गीतों के सफर में लगभग चार हजार से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज देने वाले मन्ना डे बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के खासे फैन थे। वो कहते भी थे कि राजेश खन्ना गानों पर जितना बेहतरीन परफॉर्म कर सकते हैं, वैसा दूसरों के लिए संभव नहीं होगा। फिल्म ‘आनंद’ का मशहूर गाना ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ को राजेश खन्ना पर ही फिल्माया गया था और इस खूबसूरत गीत को मन्ना डे ने अपनी आवाज दी थी।
ये तो हुई उनके फिल्मी सफर की बात लेकिन एक विवाद ऐसा भी हुआ था जिसमें मन्ना डे पुलिस के हत्थे चढ़ते चढ़ते बच गए थे। हुआ ये की मन्ना डे लखनऊ में एक प्रोग्राम में परफॉर्म करने गए मन्ना डे लखनऊ के चारबाग रलेवे स्टेशन के पास एक संगीत समारोह में हिस्सा ले रहे थे कार्यक्रम स्थल दर्शकों से खचाखच भरा था लेकिन ऐन वक्त में आयोजक चंपत हो गए।