युवा सोच के साथ बना रहा इंडस्ट्री में
मैं पिछले तीन दशक से बॉलीवुड में काम कर रहा हूं। मैंने तीन पीढिय़ों के साथ काम करते हुए महसूस किया है कि 20 साल में जब एक नई पीढ़ी जवान होती है तो वह अपनी भाषा और एक सोच लेकर आती है। उसका असर पुराने लोगों पर बहुत ज्यादा पड़ता है। क्योंकि वे एक खास म्यूजिक और फिल्मों को जी चुके होते हैं और जब नई पीढ़ी आती है तो उनके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो उनके साथ मर्ज हो जाओ या हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाओ। पहले मैं भी इन दोनों चीजों के खिलाफ था। समय के साथ मेरी समझ में आया कि अगर लंबा चलना है तो वक्त के साथ बदलना ही पड़ेगा। इसलिए मैं इंडस्ट्री में 35 वर्ष का समय बिता चुका हूं।
समाज के हिसाब से बदले गाने
दुनिया इतनी फास्ट हो गई है कि कहीं ना कहीं लफ्जों की बजाय साउंड की अहमियत बढ़ रही है। लोगों को इससे मतलब नहीं है कि कौनसा गाना चल रहा है। आजकल वे ही गाने पसंद किए जाते हैं जिस पर युथ थिरके और उसका मजा ले। इसका मतलब यह नहीं है कि बॉलीवुड गानों में परिवर्तन आया है बल्कि हमारी संस्कृति बदल रही है। ऐसे में समाज में जो बदलाव होता है उसका प्रभाव फिल्मों पर भी पड़ता है। इस युग में लोग कहीं ठहरना चाह ही नहीं रहे हैं।
खानापूर्ति के लिए रह गए सॉन्ग
आजकल लिरिक्स राइटर और संगीतकार से डायरेक्टर और प्रोड्यूसर मिलने की बजाय वाहट्सऐप पर ही गाने का संगीत और लिरिक्स भेज देते हैं। इसका प्रभाव भी देखने को मिल रहा है और इससे तकलीफ भी होती है। एक तरह से म्यूजिक ‘फील इन द ब्लैंक’ हो गया है। खाली जगह भरने के लिए फिल्म में एक—दो गाने डाल देते हैं। यह बहुत दिन तक चलने वाला नहीं। क्योंकि खराब चीज की मार्केट में लंबी उम्र नहीं होती है। कहीं ना कहीं पुराना दौर पर फिर लौटेगा।
लंबे समय तक नहीं चलेगा रिमिक्स
यह संकेत है कि जो चल रहा है उसे बैसाखी के सहारे की जरूरत पड़ गई है। आजकल पुराने गानों की तरह नए गाने बनाने का दम नहीं रहा। इसलिए पुराने गानों को दोबारा रीक्रिएट किया जा रहा है। यह लंबे समय नहीं चलेगा। लेकिन इससे पुराने लोगों को एक फायदा जरूर हुआ है कि उन्हें पता चल रहा है कि ‘आंख मारे’ जैसा कोई पुराना गाना था और नई पीढ़ी उससे कनैक्ट हो रही है। लेकिन कई गानों में पुरानी क्रिएटिविटी खराब हो रही है।
बिना तैयारी ना आएं बॉलीवुड में
नए लोगों को लगता हैं कि इंडस्ट्री में काम करना बहुत आसान है। उनको पता नहीं होता कि बॉलीवुड में रोशनी के पिछे गहरा अंधेरा है। वे इंडस्ट्री का ग्लैमर देखकर चले आते हैं, लेकिन बिना अनुभव के ज्यादा दिनों तक टिकना आसान नहीं। जबकि होना ये चाहिए कि इंडस्ट्री में आने से पहले पूरी तैयारी करनी चाहिए। स्टेप बाई स्टेप आगे बढऩा चाहिए। पहले मुसायरों, कवि सम्मेलनों और फिर टीवी से होते हुए फिल्मों में एंटर होना चाहिए। क्योंकि बिना नॉलेज के यहां जमना आसान नहीं होता।
हिट फिल्में
साढ़े तीन हजार से ज्यादा गाने लिख चुके समीर का कहना है कि मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में ‘दिल’, ‘आशिकी’, ‘साजन’, ‘दीवाना’, ‘राजा हिन्दुस्तानी’, ‘तेरे नाम’, ‘आशिक बनाया आपने’, ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘धूम’, ‘धूम 2’, ‘धूम 3’ और ‘दबंग’ सीरीज की फिल्में रही हैं। ये सभी फिल्में अपने आप में ट्रेंड सेटर रही हैं।