जानिए कौन थे वीर योद्धा तानाजी मालुसरे, जिनपर बनी है ‘तानाजी: द अनसंग वॉरियर’ फिल्म
तानाजी मालुसरे (Tanhaji Malusare) छत्रपति शिवाजी के घनिष्ठ मित्र थे। दोनों की ही मित्रता बचपन से थी। तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य स्थापना के लिए सुभेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे ।
नई दिल्ली: अजय देवगन की फिल्म ‘तानाजी द अनसंग वॉरियर’ (Tanhaji: The Unsung Warrior) सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। दर्शकों द्वारा इस फिल्म को काफी पसंद किया जा रहा है। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भी शानदार कमाई कर रही है। इस फिल्म में अजय देवगन (Ajay Devgan) ने ‘तानाजी मालुसरे’ (Tanhaji Malusare) का किरदार निभाया है। जिनकी बहादुरी की कहानी बयां करती है फिल्म ‘तानाजी द अनसंग वॉरियर’ (Tanhaji: The Unsung Warrior)। तानाजी मालुसरे (Tanhaji Malusare) को खासतौर पर कोंधाना किला (सिंहगढ़) (1670) का किला फतह करने के लिए जाना जाता है। तानाजी ने शिवाजी के आदेश पर मुगलों के खिलाफ सिंहगढ़ का युद्ध लड़ा और इस किले पर फतह हासिल की लेकिन इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो गए।
तानाजी मालुसरे (Tanhaji Malusare) छत्रपति शिवाजी के घनिष्ठ मित्र थे। दोनों की ही मित्रता बचपन से थी। तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य स्थापना के लिए सुभेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे । सुभेदार तानाजी मालुसरे जी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी मालुसरे जी छत्रपती शिवाजी महाराज जी को आमंत्रित करने पहुंचे, जहां उन्हें मालूम हुआ कि कोंढाणा पर छत्रपती शिवाजी महाराज चढ़ाई करने वाले हैं, जिसके बाद तानाजी ने कहा कि ये युद्ध वो करेंगे। इसके बाद तानाजी ने अपने पुत्र का विवाह छोड़कर युद्ध पर जाने की तैयारी की। कई लोगों ने तानाजी से कहा कि पुत्र के विवाह के बाद युद्ध कर लेना। इसपर तानाजी ने ऊंची आवाज में कहा- “नहीं, पहले कोण्डाणा दुर्ग का विवाह होगा, बाद में पुत्र का विवाह। यदि मैं जीवित रहा तो युद्ध से लौटकर विवाह का प्रबंध करूंगा। यदि मैं युद्ध में काम आया तो शिवाजी महाराज हमारे पुत्र का विवाह करेंगे।”
तानाजीराव के साथ उनके भाई सूर्याजी मालुसरे और मामा ( शेलार मामा) थे। वह पूरे 342 सैनिकों के साथ निकले थे। कोंडाणा का किला रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित था और शिवाजी को इसे कब्जा करना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। क्योंकि कहा जाता था कि ये किला जिस किसी के पास भी होगा उसका ‘पूना’ पर अधिकार होगा। किले की दीवारें इतनी ऊँची थीं कि उन पर आसानी से चढ़ना मुमकिन नहीं था। चढ़ाई बिलकुल सीधी थी। कोंडाणा तक पहुंचने पर, तानाजी और 342 सैनिकों की उनकी टुकड़ी ने पश्चिमी भाग से किले को एक घनी अंधेरी रात को घोरपड़ नामक एक सरीसृप की मदद से खड़ी चट्टान को मापने का फैसला किया। घोरपड़ को किसी भी ऊर्ध्व सतह पर खड़ी कर सकते हैं और कई पुरुषों का भार इसके साथ बंधी रस्सी ले सकती है। इसी योजना से तानाजी और उनके बहुत से साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए। कोंडाणा का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद मुग़लों पर हमला किया।
मुगलों और मराठाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। कोण्डाणा का दुर्गपाल उदयभानु नाम का एक हिन्दू था, जो स्वार्थवश मुस्लिम हो गया था। इसके साथ लड़ते हुए तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए। थोड़ी ही देर में शेलार मामा के हाथों उदयभानु भी मारा गया। सूर्योदय होते-होते कोण्डाणा दुर्ग पर भगवा ध्वज फहर गया। लेकिन अपने वीर योद्धा और मित्र की मृत्यु की खबर सुन शिवाजी महाराज अत्यंत दुखी हो गए और बोलने लगे- गढ़ आला पण सिंह गेला अर्थात् “गढ़ तो हाथ में आया, परन्तु मेरा सिंह ( तानाजी ) चला गया।” इसके बाद तानाजी मालुसरे की स्मृति में कोंढाणा दुर्ग का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया गया। क्योंकि शिवाजी तानाजी को सिंह बुलाते थे। तानाजी एक ऐसे महान योद्धा थे, जो अपने पुत्र का विवाह छोड़कर युद्ध के लिए चल पड़े और मुगलों से किला जीतने में कामयाब रहे।