वर्गिस कुरियन और श्वेत क्रांति दरअसल ये 1976 में आई फिल्म मंथन थी, जो ‘श्वेत क्रांति’ यानी दुग्ध क्रांति पर आधारित फिल्म थी। जिसे अंकुर, निशांत और मंडी जैसी फिल्में निर्देशन करने वाले डायरेक्टर श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था। ‘मंथन’ भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बेहतरीन फिल्मों में एक है। इस फिल्म को किसानों ने प्रॉड्यूस किया था? हजारों नहीं बल्कि गुजरात के करीब 5 लाख किसान ‘मंथन’ के निर्माता थे। फिल्म बनाने के लिए हर एक किसान ने अपनी कमाई से 2-2 रुपए चंदे के रूप में दिए थे।
श्याम बेनेगल बने डायरेक्टर इस फिल्म के सह-लेखक डॉक्टर वर्गीज कुरियन थे। दुनिया कुरियन को ‘अमूल’ के कर्ता-धर्ता के तौर पर भी जानती है। कुरियन ने 1970 में ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की थी, जिससे भारत में ‘श्वेत क्रांति’ आई और हम दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक बन गए। वहीं, उसी दौरान श्याम बेनेगल ने इस ऐतिहासिक सफलता पर फिल्म बनाने की ठानी ताकि ‘श्वेत क्रांति’ की यादों को सेहजकर रखा जा सके। इस तरह ‘मंथन’ बनाने के कोशिश शुरू हुई।
5 लाख किसान बने प्रोड्यूसर फिल्म की कहानी आम गांव वालों की थी, जो सहकारी समिति बनाने में लगे हैं। फिल्म की ऐसी कहानी पर कोई निर्माता पैसे लगाना चाहता था और फिल्म का बजट 10-12 लाख का था। ऐसे में कुरियन ने एक उपाय निकाला और किसानों से ही पैसे जुटाने का फैसला किया। तब तक कुरियन की गुजरात में बनाई सहकारी समिति से 5 लाख किसान जुड़ चुके थे। यह सभी किसान गांवों में सुबह-शाम दूध बेचने आते थे। उन्हें एक पैकेट दूध के लिए 8 रुपए में मिलते थे। एक दिन किसानों से गुजारिश की गई कि एक समय के लिए दूध सिर्फ 6 रुपए में बेचा जाए। इसके बाद जो 2 रुपए किसानों के बचे उसी से फिल्म बनाई गई।
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