बीज गणित के कुछ समीकरण इतने जटिल होते हैं कि इन्हें हल करने में तेज दिमाग वालों के भी पसीने छूट जाते हैं। दुनिया के समीकरण इन समीकरणों से भी जटिल होते हैं। मसलन जिंदगी अगर नाटक है और सिनेमा इस नाटक का रेकॉर्डेड रूप है, तो स्टेज पर होने वाले नाटकों के कलाकारों को वैसा एक्सपोजर क्यों नहीं मिलता, जो सिनेमा के कलाकारों को भरपूर मिलता है? एक्सपोजर के लिए नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अमरीश पुरी, अमोल पालेकर, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल आदि को नाटकों से सिनेमा का रुख करना पड़ा। नाटकों के प्रति समर्पण और जुनून को लेकर जो सिनेमा के नहीं हुए, उनके साथ ‘पूछते हैं वो कि गालिब कौन है/ कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या’ वाला मामला रहा। ‘शांतत, कोर्ट चालू आहे’, ‘तुगलक’, ‘आधे अधूरे’, ‘स्टील फ्रेम’, ‘आखिरी शमा’ समेत कई नाटकों को सहज अभिनय और कुशल निर्देशन से सजाने वाले जयदेव हट्टंगड़ी ( Jaydev Hattangadi ) के साथ यही हुआ। बारह साल पहले 5 दिसम्बर को जब उनके देहांत की खबर आई थी, कइयों का सवाल था- ‘कौन थे जयदेव हट्टंगड़ी?’ कई दूसरे उन्हें अभिनेत्री रोहणी हट्टंगड़ी ( Rohini Hattangadi ) के पति के तौर पर जानते थे।
स्वीकारे नहीं फिल्मों के प्रस्ताव
ऐसा भी नहीं था कि फिल्म वालों ने जयदेव हट्टंगड़ी के लिए रास्ते नहीं खोले। साठ और सत्तर के दशक में नाटकों में उनकी शोहरत को लेकर कई फिल्मकारों ने उन्हें प्रस्ताव दिए। उन्होंने स्वीकार नहीं किए, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे वे नाटकों के लिए ज्यादा वक्त नहीं निकाल पाएंगे। सईद अख्तर मिर्जा से दोस्ती के तकाजे को लेकर वे ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ में जरूर नजर आए। इससे पहले देव आनंद की ‘ज्वैल थीफ’ में भी उनका छोटा-सा किरदार था। जब 1971 में उनके चर्चित नाटक ‘शांतत, कोर्ट चालू आहे’ पर मराठी में फिल्म बन रही थी, तो गोविंद निहलानी के आग्रह के बावजूद उन्होंने इसमें काम नहीं किया। सत्यदेव दुबे के निर्देशन में बनी इस फिल्म से अमोल पालेकर और अमरीश पुरी सुर्खियों में आए।
‘शांतत, कोर्ट चालू आहे’ की बुलंदी
दरअसल, विजय तेंदुलकर की मराठी रचना ‘शांतत, कोर्ट चालू आहे’ को जयदेव हट्टंगड़ी ने जो बुलंदी अता की, उससे कई दूसरी भाषाओं में इसके मंचन के रास्ते खुले। अभिनेता ओम शिवपुरी के निर्देशन में इसे हिन्दी में ‘खामोश, अदालत जारी है’ नाम से मंचित किया गया। सत्यदेव दुबे ने बीबीसी के लिए इसका अंग्रेजी संस्करण तैयार किया। कभी यह नाटक जयदेव हट्ट्ंगड़ी की अभिनय क्षमता के बहुरंगी विस्तार और बहुरूपी संसार का प्रत्यक्ष प्रमाण माना जाता था। उनकी उपलब्धियों ने समकालीन हिन्दी और मराठी रंगमंच को नई गरिमा, समृद्धि और प्रतिष्ठा से अलंकृत किया।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाते थे
भारतीय जन नाट्य संगठन (इप्टा) के सक्रिय सदस्य जयदेव हट्टंगड़ी काफी समय नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में अध्यापक भी रहे। मराठी नाट्य ग्रुप आविष्कार से भी वे जुड़े रहे। लेकिन उनका असली जुड़ाव उन नाटकों से था, जिनमें वे अभिनय करते थे। ‘पोस्टर’, ‘बाकी इतिहास’, ‘सूर्य के वारिस’, ‘प्रेत’, ‘भूखे नागरिक’ आदि नाटकों में चुनौतीभरे किरदारों की सहज अदायगी का जब भी जिक्र होता है, नाट्य प्रेमियों को जयदेव हट्टंगड़ी याद आ जाते हैं- ‘ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन/ लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं।’