उन्होंने आगे कहा, “मैंने इस फिल्म को देखने के लिए टिकट भी बुक कराई थी, लेकिन पता नहीं क्यों मेरी आत्मा गवारा नहीं मान रही कि मैं इसे थिएटर में जाकर देखूं। दरअसल मैंने जो कुछ भी ट्रेलर, छोटे क्लिप्स में देख लिया है, वो सबकुछ जानने के बाद तो मुझे यही अहसास हुआ कि यह फिल्म उस लायक नहीं है।”
गजेंद्र चौहान ने कहा, “मैं अपनी मान्यता को बिलकुल भी खत्म नहीं करना चाहता हूं। मैं राम को प्रभु श्रीराम के रूप में ही देखना चाहता हूं। मैं तो मानता हूं कि जरूर इसके पीछे कोई गहरी साजिश है, वो हमारे आने वाली पीढ़ी को खराब करना चाहते हैं।”
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डायलॉग्स सुधार होने की बात पर गजेंद्र चौहान बोले, देखिए धनुष से तीर निकल चुका है। जो डैमेज होना था, वो तो हो गया। अब उसे कितना भी सुधार लें, वो बदलने वाला नहीं है। इससे कोई फायदा नहीं होगा। लोगों ने आदिपुरुष को सजा तो दे ही दी है। पहले दिन के कलेक्शन और आज के कलेक्शन में गिरावट देख लें।”उन्होंने कहा, ये सजा के पात्र हैं। उन्हें सजा तो मिलनी ही चाहिए। बल्कि मैं तो सेंसर बोर्ड के डिसीजन से हैरान हूं। उनपर भी सवाल खड़ा किया जाना चाहिए। इस फिल्म को तो रिलीज ही नहीं किया जाना चाहिए था। पूरी फिल्म पर बैन होनी चाहिए। सरकार को तुरंत इस पर रोक लगा देना चाहिए।”
इंटरव्यू में गजेंद्र ने कहा, “मुझे लगता है कि मनोज मुंतशिर ने अज्ञानता का परिचय दिया है। उसे वाकई में कोई नॉलेज नहीं है। वो गीतकार है, उनसे संवाद लिखवा दिए हैं। जो वक्ता, राइटर्स के वीडियोज सोशल मीडिया पर चलते हैं न, वहीं से डायलॉग उठाकर मुंतशिर साहब ने फिल्म में जोड़ दिया है। कुमार विश्वास का डायलॉग है न ‘तेरी लंका लगा दूंगा मैं’ इन सभी को जोड़कर उसने पेश किया है। बता रहा है कि जैसे उसी ने सबकुछ लिखा है। अभी भी वो जिद्द पर अड़ा हुआ है। ये अंहकार किसी भी कलाकार के लिए सही नहीं है।”