ऐसे ही एक दिन वो काम की तलाश में भटक रहे थे तभी उन्हें अपने एक पुराने जानकार मिल गए। उनका नाम था डॉ मथानी जो दिलीप साहब के पुराने पारिवारिक मित्र थे। दिलीप साहब ने उन्हें बताया कि मैं नौकरी कि तलाश कर रहा हूं तो क्या आप कुछ मदद कर सकते हैं। तो डॉ साहब ने कहा, “देखो दिलीप मेरे पास कोई नौकरी तो नहीं है लेकिन मैं बॉम्बे टॉकिज की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहा हुं, तो अगर तुम्हारे पास वक्त है तो चलो, क्या पता तुम्हें कोई काम मिल जाए।” दिलीप साहब ने कहा, “तो चलिए मैं तो खाली हीं घूम रहा हुं।”
जब देविका रानी से उनकी मुलाकात हुई, तो देविका रानी ने देखा कि दिलीप कुमार खूबसूरत तो थे हीं, अच्छी खासी पर्सनालिटी भी थी, तो उन्होंने दिलीप साहब को काम पर रख लिया। और ये तय हुआ कि दिलीप साहब को 1250 रु महीने की सैलरी मिलेगी। तो फिल्म इंडस्ट्रि में दिलीप कुमार की जो पहली पगार थी 1250 रु थी। दिलीप साहब को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ, क्योंकि उस जमाने में ये रकम बहुत बड़ी हुआ करती थी। उन्होंने डॉ मथानी से पूछा की ये सहीं कह रहीं है, क्या मुझे इतना पैसा मिलेगा? डॉ मथानी ने कहा, “जी बिल्कुल, आपको इतना पैसा मिलेगा।” अब दिलीप साहब काम करने लगे, उन दिनों वो हीरो का काम तो नहीं कर रहे थे, वहां जो दूसरे काम होते थे वो किया करते थे। लेकिन लगते अच्छे थे, तो देवीका रानी ने उन्हें एक दिन देखा और उनसे पूछा, “क्या आपको उर्दू आती है?” दिलीप साहब ने कहा, “जी बिल्कुल आती है।” उसके बाद देवीका रानी ने कहा, “हमें अपनी नई फिल्म के लिए नया हीरो चाहिए, तो तुम कल से इस फिल्म की शूटिंग शुरु कर दो।” इस तरह से दिलीप साहब का फिल्मी सफर शुरु हो गया।
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लेकिन देवीका रानी को यूसुफ खान नाम पसंद नहीं था। उन्होंने यूसुफ को कुछ नाम सुझाए जिसमें से एक नाम था ‘दिलीप कुमार’। और आप जानते हैं, यूसुफ खान ने दिलीप कुमार ही क्यों नाम चुना? क्योंकि वो अपने पिता की पिटाई से बचना चाहते थे। उन्हें लगता था कि अगर दिलीप कुमार नाम रख लुंगा तो पिता जी को पता ही नहीं चलेगा कि ये मैं हुं। लेकिन जब कामयाबी कदम चूमती है तो उसकी गूंज जमाने भर को सुनाई देती है, तो उनके पिता जी को कैसे सुनाई न देती। तो दिलीप कुमार की जब पहली फिल्म आई, तब उनकी फिल्म का एक बड़ा सा पोस्टर उनके घर के पास लगाया गया। जब उनते पिता ने वो पोस्टर देखा तो उन्हें लगा कि ये तो अपना ही लड़का लग रहा है। तब जाकर उन्हें पता चला कि दिलीप कुमार फिल्मों में काम कर रहे हैं, उनका यूसुफ फिल्मों में काम कर रहा है और उसने अपना नाम बदलकर दिलीप कुमार रख लिया है। शुरुआत में कुछ नाराजगी हुई क्योंकि दिलीप साहब के पिता फिल्मों के खिलाफ थे। उन्हें लगता था कि ये तो नाटक नौटकी है, मगर धीरे-धीरे पिता जी भी मान गए और दिलीप कुमार ने भी धीरे-धीरे फिल्मों में कामयाबी कि एक कहानी लिखनी शुरु कर दी।
दिलीप कुमार ने अपने करियार की शुरुआत फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से कि थी, जो साल 1944 में आई। ये फिल्म कामयाब तो नहीं रही थी। दिलीप साहब की पहली कामयाब फिल्म रही थी ‘जुगनू’ जो 1947 में रिलीज हुई थी। इसके बाद दिलीप कुमार कामयाब सितारों में शुमार हो गए। 1949 में फिल्म ‘अंदाज़’ में शो मैन और ट्रेजडी किंग ने एक साथ काम किया। पहली बार दिलीप साहब ने राज कपूर के साथ काम किया और ये फिल्म हिट रही। उसके बाद 1951 में फिल्म ‘दीदार’ की, उसके बाद 1955 में फिल्म ‘देवदास’। और इसी तरह की गंभीर भूमिकाओं कि वजह से उन्हे कहा जाने लगा ट्रेजडी किंग।