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इस सुपरस्टार के पास ना पैसे थे और ना रहने की जगह, मजबूरी मेें करना पड़ा ऐसा काम

3 दिसंबर, 2011 को वाशिंगटन के एक होटल में उनका निधन हो गया था।

Dec 03, 2019 / 11:17 am

Mahendra Yadav

dev anand

बहुमुखी प्रतिभा के धनी देवानंद का नाम ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने न सिर्फ अभिनय के क्षेत्र में बल्कि फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। 3 दिसंबर, 2011 को वाशिंगटन के एक होटल में उनका निधन हो गया था। आज उनकी पुण्यतिथी है। पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में धर्मदेव पिशोरीमल आनंद उर्फ देवानंद ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा पूरी की।

30 रुपए लेकर पहुंचे मुंबई
ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाने की सोची। वर्ष 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुम्बई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपये थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। उन्होंने रेलवे स्टेशन के नजदीक एक सस्ते से होटल में कमरा किराये पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे जो देवानंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये संघर्ष कर रहे थे।

इस सुपरस्टार के पास ना पैसे थे और ना रहने की जगह, मजबूरी मेें करना पड़ा ऐसा काम
मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में की नौकरी
जब काफी दिनों तक संघर्ष करने के बाद भी उन्हें फिल्मों में कोई काम नहीं मिला तो जीवन—यापन के लिए मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में लिपिक की नौकरी कर ली। यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में देवानंद को 165 रुपये मासिक वेतन मिलना था। इसमें से 45 रुपए वह अपने परिवार के खर्च के लिये भेज देते थे। उन्होंने लगभग एक वर्ष तक यह नौकरी की।

नाटकों में किए छोटे—मोटे रोल
मिलिट्री सेन्सर की नौकरी छोड़ने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े हुए थे। उन्होंने देवानंद को भी अपने साथ इप्टा मे शामिल कर लिया। इस बीच उन्हें नाटकों में छोटे-मोटे रोल किए। वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म ‘हम एक हैं’ से बतौर अभिनेता उन्होंने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म ‘जिद्दी’ उनकी पहली हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की। नवकेतन के बैनर तले उन्होने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म ‘अफसर’ का निर्माण किया। इसके बाद उन्होंने अपने बैनर तले वर्ष 1951 में फिल्म ‘बाजी’ बनाई। गुरुदत्त के निर्देशन में बनी इस फिल्म की सफलता के बाद देवानंद फिल्म इंडस्ट्री मे एक अच्छे अभिनेता के रूप मे शुमार हो गए।

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