बचपन से ही अभिनय की ओर झुकाव:
बलराज साहनी का जन्म 1913 में रावलपिंडी शहर (अब पाकिस्तान) में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में हुआ था। उनका असली नाम युधिष्ठर साहनी था। बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था ।
बलराज साहनी का जन्म 1913 में रावलपिंडी शहर (अब पाकिस्तान) में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में हुआ था। उनका असली नाम युधिष्ठर साहनी था। बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था ।
अंग्रेजी के शिक्षक बने:
वर्ष 1930 के अंत में बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन पहुंचे, जहां बलराज साहनी अंग्रेजी के शिक्षक के रूप मे नियुक्त हुए। वर्ष 1938 मे बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बी.बी.सी के हिन्दी के उदघोषक के रूप में इग्लैंड में नियुक्त किया गया । लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह 1943 में भारत लौट आए।
वर्ष 1930 के अंत में बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन पहुंचे, जहां बलराज साहनी अंग्रेजी के शिक्षक के रूप मे नियुक्त हुए। वर्ष 1938 मे बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बी.बी.सी के हिन्दी के उदघोषक के रूप में इग्लैंड में नियुक्त किया गया । लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह 1943 में भारत लौट आए।
इप्टा में शामिल हो गए:
साहनी अपने बचपन का शौक (एक्टिंग) को पूरा करने के लिये इंडियन प्रोग्रेसिव थिएटर ऐसोसिएशन (इप्टा) में शामिल हो गए। इप्टा में वर्ष 1946 में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक ‘इंसाफ’ में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फिल्म ‘धरती के लाल’ में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का भी मौका मिला ।
साहनी अपने बचपन का शौक (एक्टिंग) को पूरा करने के लिये इंडियन प्रोग्रेसिव थिएटर ऐसोसिएशन (इप्टा) में शामिल हो गए। इप्टा में वर्ष 1946 में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक ‘इंसाफ’ में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फिल्म ‘धरती के लाल’ में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का भी मौका मिला ।
अभिनय के साथ लेखन में रुचि:
साहनी अभिनय के साथ-साथ लिखने में भी काफी रुचि रखते थे । वर्ष 1960 में अपने पाकिस्तानी दौरे के बाद उन्होंने ‘मेरा पाकिस्तानी सफरनामा’ और वर्ष 1969 में तत्कालीन सोवियत संघ के दौरे के बाद ‘मेरा रूसी सफरनामा’ किताब लिखी । इसके अलावा उन्होंने ‘मेरी फिल्मी आत्मकथा’ किताब के माध्यम से लोगों को अपने बारे में बताया। इतना ही नहीं देवानंद निर्मित फिल्म ‘बाजी’ की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी।
साहनी अभिनय के साथ-साथ लिखने में भी काफी रुचि रखते थे । वर्ष 1960 में अपने पाकिस्तानी दौरे के बाद उन्होंने ‘मेरा पाकिस्तानी सफरनामा’ और वर्ष 1969 में तत्कालीन सोवियत संघ के दौरे के बाद ‘मेरा रूसी सफरनामा’ किताब लिखी । इसके अलावा उन्होंने ‘मेरी फिल्मी आत्मकथा’ किताब के माध्यम से लोगों को अपने बारे में बताया। इतना ही नहीं देवानंद निर्मित फिल्म ‘बाजी’ की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी।
उनकी यादगार फिल्में:
बॉलीवुड में बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपने संजीदा और भावात्मक अभिनय से लगभग चार दशक तक सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया । बलराज साहनी के उत्कृष्ठ अभिनय से सजी ‘दो बीघा जमीन’, ‘वक्त’, ‘काबुलीवाला’, ‘एक फूल दो माली’ और ‘गर्म हवा’ जैसे दिल को छू लेने वाली फिल्में आज भी सिने प्रेमियों के दिलों में बसी हुई है।
बॉलीवुड में बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपने संजीदा और भावात्मक अभिनय से लगभग चार दशक तक सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया । बलराज साहनी के उत्कृष्ठ अभिनय से सजी ‘दो बीघा जमीन’, ‘वक्त’, ‘काबुलीवाला’, ‘एक फूल दो माली’ और ‘गर्म हवा’ जैसे दिल को छू लेने वाली फिल्में आज भी सिने प्रेमियों के दिलों में बसी हुई है।