बतौर बाल कलाकार बनाई पहचान
नूरजहां को वर्ष 1930 में इंडियन पिक्चर के बैनर तले बनी एक मूक फिल्म ‘हिन्द के तारे’में काम करने का मौका मिला। उन्हें करीब 11 मूक फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। 1931 तक उन्होंने बतौर बाल कलाकार अपनी पहचान बना ली थी। वर्ष 1932 में प्रदर्शित फिल्म ‘शशि पुन्नु’ नूरजहां के कॅरियर की पहली टॉकी फिल्म थी। उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता पंचोली से हुई। उन्होंने उसे अपनी नई फिल्म ‘गुल ए बकावली’ के लिए चुना। इसमें नूरजहां ने अपना पहला गाना ‘साला जवानियां माने’ और ‘पिंजर दे विच’ रिकॉर्ड कराया।
फिल्म’ खानदान’ से हुई मशहूर
इसके बाद वर्ष 1942 में पंचोली की निर्मित फिल्म ‘खानदान’ की सफलता के बाद नूरजहां बतौर अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। इसमें उन पर फिल्माया गाना ‘कौन सी बदली में मेरा चांद है आजा’ श्रोताओं के बीच लोकप्रिय भी हुआ। इसके बाद नूरजहां ने फिल्म निर्देशक शौकत हुसैन से निकाह किया। इस बीच उन्होंने शौकत हुसैन की निर्देशित ‘नौकर’, ‘जुगनू’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया। इसके साथ ही वह अपनी आवाज में नए प्रयोग करती रही। अपनी इन खूबियों की वजह से वह ठुमरी गायिकी की महारानी कहलाने लगीं।
आज भी लोकप्रिय है ये गाने
‘दुहाई’, ‘दोस्त’, और ‘बड़ी मां’ फिल्मों में उनकी आवाज का जादू श्रोताओं के सिर चढ़कर बोला। इस तरह नूरजहां फिल्म इंडस्ट्री में मल्लिका-ए-तरन्नुम कही जाने लगीं। 1945 में नूरजहां की एक और फिल्म ‘जीनत’ रिलीज हुई। इसकी एक कव्वाली ‘आहें ना भरी शिकवे ना किए’, ‘कुछ भी ना जुवां से काम लिया’ श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुई। महान संगीतकार नौशाद के निर्देशन में उनका गाया गीत ‘आवाज दे कहां हैं’,’आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे’, ‘जवां है मोहब्बत’ श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।
‘दुहाई’, ‘दोस्त’, और ‘बड़ी मां’ फिल्मों में उनकी आवाज का जादू श्रोताओं के सिर चढ़कर बोला। इस तरह नूरजहां फिल्म इंडस्ट्री में मल्लिका-ए-तरन्नुम कही जाने लगीं। 1945 में नूरजहां की एक और फिल्म ‘जीनत’ रिलीज हुई। इसकी एक कव्वाली ‘आहें ना भरी शिकवे ना किए’, ‘कुछ भी ना जुवां से काम लिया’ श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुई। महान संगीतकार नौशाद के निर्देशन में उनका गाया गीत ‘आवाज दे कहां हैं’,’आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे’, ‘जवां है मोहब्बत’ श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।
1963 में अभिनय से ली विदाई
वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के बाद नूरजहां ने पाकिस्तान जाने का निश्चय कर लिया। अभिनेता दिलीप कुमार ने जब उनसे से यहा ही रहने की पेशकश की तो उन्होंने कहा, ‘मैं जहां पैदा हुई हूं, वहीं जाऊंगी।’ पाकिस्तान जाने के बाद भी नूरजहां ने फिल्मों मे काम करना जारी रखा। 1963 में नूरजहां ने अभिनय की दुनिया से विदाई ले ली। 1966 में पाकिस्तान सरकार ने उनको तमगा-ए-इम्तियाज सम्मान से नवाजा।
वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के बाद नूरजहां ने पाकिस्तान जाने का निश्चय कर लिया। अभिनेता दिलीप कुमार ने जब उनसे से यहा ही रहने की पेशकश की तो उन्होंने कहा, ‘मैं जहां पैदा हुई हूं, वहीं जाऊंगी।’ पाकिस्तान जाने के बाद भी नूरजहां ने फिल्मों मे काम करना जारी रखा। 1963 में नूरजहां ने अभिनय की दुनिया से विदाई ले ली। 1966 में पाकिस्तान सरकार ने उनको तमगा-ए-इम्तियाज सम्मान से नवाजा।