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बॉलीवुड

पुराने गानों के रीक्रिएशन के खिलाफ बुलंद हो रहे हैं सुर

मौलिकता से खिलवाड़ क्यों?

Feb 28, 2020 / 06:45 pm

पवन राणा

पुराने गानों के रीक्रिएशन के खिलाफ बुलंद हो रहे हैं सुर

पुराने गानों के रीक्रिएशन के खिलाफ बुलंद हो रहे हैं सुर

– दिनेश ठाकुर

संगीतकार विशाल ददलानी के बाद अब आइटम गर्ल मलाइका अरोड़ा खान ने पुराने गानों के रीक्रिएशन के खिलाफ आवाज बुलंद की है। हालांकि उनकी आवाज में सिर्फ अपने गानों की सुरक्षा का भाव ज्यादा नजर आ रहा है। ‘छैयां-छैयां’, ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘माही वे’ सरीखे गानों के लिए पहचानी जाने वाली मलाइका का कहना है कि पांच-दस गाने ऐसे हैं, जिनका रीक्रिएशन नहीं किया जाना चाहिए, इन्हें ऑरिजनल ही रहने दिया जाए। ऐसे ‘पांच-दस’ गानों में वह अपने ‘छैयां-छैयां’ को भी गिनती हैं। यह वही बात हुई कि मेरे मकान के शीशे न तोड़े जाएं, दूसरों के भले तोड़े जाते रहें।

पुराने गानों के रीक्रिएशन के खिलाफ बुलंद हो रहे हैं सुर

पुराने गानों का हुलिया बदलने के खिलाफ विशाल ददलानी का रुख मलाइका के मुकाबले ज्यादा धारदार है। कुछ अर्सा पहले उन्होंने रीमिक्स तैयार करने वाले संगीतकारों को चेतावनी दी थी कि उनकी इजाजत के बगैर उनके गानों को रीक्रिएट किया गया तो वह कानूनी कार्रवाई करेंगे। वह अपने ‘साकी रे साकी’ (मुसाफिर) को ‘बटाला हाउस’ में रीक्रिएट किए जाने से रुष्ट हैं। दरअसल, पुराने गानों के रीमिक्स और रीक्रिएशन का सिलसिला जिस तरह तेज से तेजतर होता जा रहा है, उसने कई दूसरे संगीतकारों को भी चिंता में डाल रखा है। दक्षिण के नामी संगीतकार इल्यराजा तो काफी समय से इस परिपाटी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं, लेकिन बॉलीवुड में रीमिक्स का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

पुराने गानों के रीक्रिएशन के खिलाफ बुलंद हो रहे हैं सुर

फिल्म के अतिरिक्त आकर्षण के लिए किसी न किसी गाने को रीक्रिएट कर चिपकाना जैसे मजबूरी बन गया है। शाहरुख खान की ‘रईस’ में ‘लैला मैं लैला’ (कुर्बानी) था तो विद्या बालन की ‘तुम्हारी सुलु’ में ‘हवा हवाई’ (मि. इंडिया)। फिल्मों में ‘हम्मा हम्मा’ (बॉम्बे), ‘एक दो तीन’ (तेजाब), ‘काटे नहीं कटते’ (मि. इंडिया), ‘जब छाए मेरा जादू’ (लूटमार), ‘तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त’ (मोहरा), ‘तम्मा तम्मा’ (थानेदार) वगैरह भी रीक्रिएट कर परोसे जा चुके हैं।

रीमिक्स के हिमायती भले कहें कि पुराने गानों को टेक्नो बीट्स पर नए जमाने के हिसाब से तैयार किया जा रहा है, इस परिपाटी ने मौजूदा दौर के कई संगीतकारों की रचनात्मकता पर सवालिया निशान लगा दिया है। गानों की धुन वही है, मुखड़ा वही है तो आपका रचनात्मक योगदान क्या है? कई गानों में कमजोर अंतरे डालकर इनका स्वरूप बिगाड़ दिया गया। दूसरी पुरातन धरोहरों की तरह पुराने गाने हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। सरकार और सिनेमा के नुमाइंदों को इनके स्वरूप से छेड़छाड़ के खिलाफ पहल करनी चाहिए।

फिल्म संगीत कई साल से संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। गाने मेलोडी से दूर होते-होते शोर-शराबे से घिर गए हैं। मेलोडी के दौर को वापस लाने को कोशिश करने के बजाय संगीतकारों ने यह शॉर्ट कट अपना लिया है कि मेलोडी वाले पुराने गाने उठाओ और उन्हें नई बीट्स के शोर से सजा दो। एस.डी. बर्मन, नौशाद, मदन मोहन, सी. रामचंद्र, ओ.पी. नैयर, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर.डी. बर्मन, राजेश रोशन जैसे संगीतकारों के पुराने गाने मेलोडी की बदौलत ही नई पीढ़ी में लोकप्रिय हैं। संगीत का समंदर अथाह है। यहां भी ‘जिन खोजा तिन पाइया’ (जिसने खोजा उसने पाया) वाली बात है। संगीत में नई धुनें रचने के लिए गहरे डूबना पड़ता है। किनारे बैठकर लहरें गिनने वाले रीमिक्स से आगे नहीं सोच सकते।

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