किसी भी कला में दोहराव और जड़ता को कमजोरी माना जाता है, लेकिन फिल्मों में थोड़ी सूझ-बूझ से इस किस्म की कमजोरी को दबा दिया जाता है। कभी-कभी तो दोहराव भी किसी-किसी फिल्म की ताकत बनकर उभरता है। मसलन 1985 में आई मिथुन चक्रवर्ती और पद्मिनी कोल्हापुरे की ‘प्यार झुकता नहीं’, जो नोट टू नोट, बीट टू बीट 1973 में आ चुकी ‘आ गले लग जा’ (शशि कपूर, शर्मिला टैगोर) की नकल थी। इस फिल्म ने मिथुन और पद्मिनी के सितारे रातों-रात बुलंद कर दिए थे। शशि कपूर की ‘जब जब फूल खिले’ (1965) की कहानी ‘राजा हिन्दुस्तानी’ (1996) में दोहराई जाती है और कारोबारी मैदान में यह मूल फिल्म से ज्यादा लम्बी दौड़ लगाती है।
बॉलीवुड अपनी पुरानी फिल्मों के अलावा हॉलीवुड से भी प्रेरणा हासिल करता रहता है। हॉलीवुड की तर्ज पर पिछले कुछ साल से यहां भी हिट फिल्मों को फ्रेंचाइजी को तौर पर स्थापित किया जा रहा है। कई फिल्मों के दूसरे-तीसरे भाग बन चुके हैं या बनाए जा रहे हैं। हॉलीवुड अगर ‘रॉकी’, डाई हार्ड, स्टार वार्स, जेम्स बॉन्ड, बेटमैन, स्पाइडरमैन, ‘टर्मिनेटर’ वगैरह की कडिय़ों की झड़ी लगा सकता है तो बॉलीवुड पीछे क्यों रहे। यहां भी ‘धूम’, कृष, गोलमाल, बागी, मर्डर, आशिकी, जॉली एलएलबी, हाउसफुल, कहानी, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘बाहुबली’ जैसे फ्रेंचाइजी-योद्धा मैदान में हैं। राजामौली दो बार बाहुबली का तमाशा दिखाने के बाद इसकी तीसरी कड़ी की तैयारी शुरू कर दें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस फिल्म की दो कडिय़ों पर नोटों की झमाझम से तीसरी कड़ी का रास्ता खुद-ब-खुद खुल गया है। खबर है कि दो साल पहले आई ‘बधाई हो’ (आयुष्मान खुराना, नीना गुप्ता) का दूसरा भाग ‘बधाई दो’ नाम से बनने वाला है। इसके निर्देशक भी दूसरे होंगे और कलाकार भी। यहां महिला थाने के इकलौते पुरुष अधिकारी (राजकुमार राव) और एक स्कूल की पीटी टीचर (भूमि पेडनेकर) के रिश्तों के इर्द-गिर्द कॉमेडी का ताना-बाना बुना जाएगा। ‘बधाई हो’ की थीम काफी हटकर थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि ‘बधाई दो’ में भी दर्शकों को कुछ नया देखने को मिलेगा।