इसके बाद उन्होंने ‘तेरे शहर में’ (1985) नाम की फिल्म में काम किया जिसमें उनके साथ स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल, कुलभूषण खरबंदा, सोनू वालिया भी थे। इस फिल्म का निर्देशन सागर सरहदी ने किया था। फिल्म के प्रोड्यूसर ने दिल्ली के फाइनेंसर से पैसे लिए थे। पर अफसोस प्रोड्यूसर पैसे वापस नहीं दे सके इसलिए फाइनेंसर्स ने रील छीन लीं जिसकी वजह से यह फिल्म कभी रिलीज नहीं हुई।
फिर एक घटना हुई जब फिल्म ‘मासूम गवाह’ (1990) में भी उन्हें कास्ट किया गया। फिल्म में दूसरे कलाकार थे, अनीता राज, प्रेम चोपड़ा, सईद जाफरी, सतीश शाह और मैकमोहन। फिल्म लगभग पूरी हो चुकी थी पर इसी दौरान नसीरुद्दीन शाह और फिल्म के डायरेक्टर एम. एम. बेग की किसी बात पर हाथापाई हो गई। इसी के चलते फिल्म कभी रिलीज नहीं हो सकी।
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इसी के साथ कई ऐसी फिल्में बनी जो उनके कॅरियर की मुसीबत साबित हुई। ‘दयालु’ , ‘पाबंदी’ (1990), ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ (1991), ‘शहादत’ (1992) जैसी सभी फिल्में आगे जाकर रुक गईं। लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह लगातार अपनी किस्मत से लड़ते रहे और आज इंडस्ट्री में वह बेहतरीन एक्टर्स में से एक हैं।