कॅरियर का पहला गीत:
आशा के पिता पंडित दीनानाथ मंगेश्कर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे। जब आशा नौ साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था। पिता के जाने के बाद घर की आर्थिक जिम्मेदारी उनके और लता पर आ गई थी। लता मंगेश्कर ने फिल्मों में अभिनय के साथ साथ गाना भी शुरू कर दिया था। आशा भोंसले के कॅरियर का पहला गीत साल 1948 में आई फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया…’ है।
16 साल में अपने से बड़े शख्स से की शादी:
आशा ने महज 16 साल की उम्र में अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध जाते हुये अपनी उम्र से काफी बड़े गणपत राव भोंसले से शादी कर ली थी। बता दें कि गणपत राव, लता मंगेश्कर के पर्सनल सेक्रेटरी थे जो उनका सारा काम देखते थे। गणपतराव से आशा भोंसले को प्यार हो गया लेकिन इस शादी के लिए घरवाले तैयार नहीं थे। दोनों ने घर से भागकर शादी का फैसला लिया। उस वक्त आशा भोंसले की उम्र 16 साल थी, जबकि गणपतराव की 31 साल। इन दोनों की शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली थी।
ससुराल वालें ने घर से निकाल दिया था:
एक इंटरव्यू के दौरान आशा ने बातया था, ‘गणपतराव के परिवार ने उन्हें स्वीकार नहीं किया था। उनके साथ मारपीट की कोशिश होती थी। आखिकार गणपतराव ने एक दिन आशा भोंसले को घर से निकाल दिया। उस वक्त वो प्रेग्नेंट थीं। ससुराल से निकाले जाने के बाद वो अपने दो बच्चों हेमंत और वर्षा के साथ वापस अपने मायके आ गईं।’
समझी जाती थीं इस अभिनेत्री की आवाज:
आशा के सिने कॅरियर की बात रकें तो साल 1957 में संगीतकार ओ.पी.नैय्यर के संगीत निर्देशन में बनी निर्माता-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा की फिल्म ‘नया दौर’ आशा भोंसले के कॅरियर का अहम पड़ाव लेकर आई। वहीं फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ में आशा भोंसले ने आर.डी.बर्मन के संगीत में ‘आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा…’ गाने को अपनी आवाज दी। ये गाना सुपरहिट रहा। वहीं साठ और सत्तर के दशक मे आशा भोंसले हिन्दी फिल्मों की फेमस एक्ट्रेस हेलन की आवाज समझी जाती थीं। आशा भोंसले ने हेलन के लिये ‘तीसरी मंजिल’ में ‘ओ हसीना जुल्फों वाली…’ ‘कारवां’ में ‘पिया तू अब तो आजा…’, ‘मेरे जीवन साथी’ में ‘आओ ना गले लगा लो ना…’ और ‘डॉन’ में ‘ये मेरा दिल यार का दीवाना…’ गीत गाया है। वहीं फिल्म ‘उमराव जान’ से आशा भोंसले एक कैबरे सिंगर और पॉप सिंगर की छवि से बाहर निकली और लोगों को यह अहसास हुआ कि वह हर तरह के गीत गानें में सक्षम हैं। ‘उमराव जान’ के लिये आशा ने ‘दिल चीज क्या है…’ और ‘इन आंखो की मस्ती के…’ जैसी गजलें गाकर आशा को खुद भी आश्चर्य हुआ था। इस फिल्म के लिये उन्हें अपने कॅरियर का पहला नेशनल अवॉर्ड भी मिला था। इसके अलावा आशा को बतौर गायिका 8 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें साल 2001 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।