एक करोड़ रुपए (तब यह रकम काफी बड़ी हुआ करती थी) की लागत से बनी ‘मेरा नाम जोकर’ इससे पहले की भारतीय फिल्मों के मुकाबले सबसे लम्बी फिल्म (4.4 घंटे) थी। इसमें दो इंटरवल रखे गए। राज कपूर पर चार्ली चैप्लिन का काफी प्रभाव रहा। अपनी ज्यादातर फिल्मों में वे चैप्लिन की तरह मासूम आम आदमी के किरदार में नजर आए, जो प्रतिकूल हालात में भी सभी को हंसाता-गुदगुदाता रहता है। ‘मेरा नाम जोकर’ एक तरह से उनकी आत्मकथा ही है। यूनानी नाटकों की तरह भव्य और दुखांत करुणा वाली इस फिल्म का नायक सर्कस का जोकर है। वह प्रेम बांटना और पाना चाहता है, लेकिन समय के साथ उसके सपने बिखरते रहते हैं और आखिर में अपने बड़े दिल के साथ वह अकेला रह जाता है।
राज कपूर की दूसरी फिल्मों की तरह ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत-संगीत भी फूल में खुशबू और चंदन में पानी की तरह रचा-बसा है। ‘जाने कहां गए वो दिन’, ‘ए भाई जरा देखके चलो’, ‘कहता है जोकर सारा जमाना’ और ‘जीना यहां मरना यहां’ में उस जोकर की टीस को आज भी महसूस किया जा सकता है, जो समाज को जीवन के गहरे दर्शन से जोडऩा चाहता था, लेकिन समाज ने जिससे कहा- ‘बौद्धिकता नहीं, बाजार के साथ चलो।’