एसबीआरटी तकनीक
कैंसर रोगियों को रेडियोथैरेपी (radiotherapy) से भी गुजरना पड़ता है। ऐसे में अब आधुनिक तरह से इसकी डोज देने का तरीका है स्टीरियोटेक्टिक बॉडी रेडिएशन थैरेपी (Stereotactic body radiation therapy ) (एसबीआरटी)। इससे फेफड़े, किडनी, लिवर, प्रोस्टेट कैंसर का शुरुआती स्टेज में इलाज संभव है। इस तकनीक से रेडिएशन की डोज सीधे ट्यूमर पर देते हैं जिससे यह नष्ट हो जाता है और उसके आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं होता। सामान्य रेडिएशन में ट्यूमर खत्म होने के बावजूद स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान होता है जिससे रोगी की स्थिति बिगड़ती है।
लक्षणों की पहचान
लंबे समय से खांसी रहना, कफ आना, बलगम में कभी-कभी खून आ जाना, सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होना, अचानक वजन कम होना, भूख न लगना, बहुत जल्दी थक जाना प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं। समय रहते जांच के बाद इलाज कराया जाए तो बीमारी से बचाव संभव है।
इलाज
कैंसर का इलाज ‘स्टेज’ के आधार पर तय करते हैं। फस्र्ट व सेकंड स्टेज पर सर्जरी से रोग को 80.90 प्रतिशत ठीक करना संभव है। थर्ड व फोर्थ स्टेज में कीमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी, टार्गेटेड व इम्युनोथैरेपी देते हैं।
हालांकि इसमें रोग पूरी तरह ठीक होगा या नहींए कहना मुश्किल होता है।
10 प्रतिशत कैंसर के रोगी ही रोग की फस्र्ट स्टेज में चिकित्सक के पास पहुंचते हैं, ऐसे में इलाज संभव है।
80 प्रतिशत कैंसर के मामले खराब जीवनशैली, जबकि 20 फीसदी आनुवांशिक कारण से होते हैं।
साइबर नाइफ
ब्रेन ट्यूमर के मरीजों में साइबर नाइफ तकनीक से बिना चीर-फाड़ के इलाज करते हैं। इससे ट्यूमर की पहचान कर उसपर किरणें देते हैं ताकि ट्यूमर का आकार धीरे-धीरे छोटा होने के साथ खत्म हो जाए। मरीज की सीटी स्कैन व एमआरआई के बाद इसे करते हैं।
इम्युनोथैरेपी
इम्युनोथैरपी भी कारगर है। इसके जरिए रोगी के शरीर की इम्युनिटी बढ़ाते हैं ताकि उसमें रोग से लडऩे की क्षमता पैदा हो सके। इसके लिए दवाओं के अलावा पौष्टिक आहार लेने की सलाह देते हैं। जिसमें मौसमी फल और सब्जियों के अलावा मेवे खाने के लिए कहते हैं।
समय पर स्क्रीनिंग
रोग से बचाव के लिए स्क्रीनिंग जरूरी है। महिलाओं की उम्र 40 से अधिक है व स्तन में गांठ या इनमें से सफेद डिस्चार्ज हो रहा है तो सतर्क हो जाएं। इसी तरह सर्विक्स कैंसर से बचाव के लिए साफ.सफाई का ध्यान रखें। जो पुरूष तंबाकू या सिगरेट-बीड़ी पीते हैं उन्हें अपने मुंह में टॉर्च जलाकर एक बार शीशे में जरूर देखना चाहिए या किसी और से दिखाना चाहिए। यदि मुंह में कोई सफेद धब्बा दिख रहा है तो तुरंत डॉक्टर से मिलें, ये धब्बा मुंह के कैंसर का संकेत हो सकता है। कैंसर की फैमिली हिस्ट्री है तो डॉक्टरी सलाह से नियमित जांच कराएं। लक्षण दिखने पर मुख्य रूप से सीटी स्कैन, पैट सीटी स्कैन, एक्स-रे टिश्यू डायग्नोसिस, एफएनएसी, बायोप्सी जांच से रोग पता करते हैं। पल्मोनरी फंक्शन टैस्ट (पीएफटी) से फेफड़ों की क्षमता जांचते हैं।
योग भी कारगर
योग और एक्सरसाइज सामान्य व्यक्ति के अलावा रोगियों के लिए भी फायदेमंद हैं। रोग से बचाव के अलावा इनसे बीमारी बढऩे की गति और गंभीरता धीमी व कम हो जाती है। योग या व्यायाम करने से शरीर में फैट की मात्रा कम होती है जिससे कैंसर कोशिकाएं तेजी से नहीं बढ़ी। रक्त संचार बढिय़ा रहता है और हार्मोन का संतुलन सही रहता है जिससे शरीर में किसी तरह के रोग के फैलने की आशंका कम होती है। तनाव से दूरी भी रोगमुक्त बनाए रखती है।