नवजात में भी कब्ज की परेशानी
छोटे बच्चों को भी कब्ज की समस्या हो सकती है लेकिन सख्त मल को ही कब्ज मानते हैं। नवजात का पेट ज्यादा बार साफ होने को कब्ज नहीं मानते हैं। किसी शिशु का चार दिन में एक बार पेट साफ होगा तो किसी का एक दिन में चार बार। यह उसकी शारीरिक स्थिति के अनुसार हो सकता है। इसे कब्ज मानते हुए अपनी मर्जी से न तो एनिमा लाएं और न ही हरड़ आदि देने जैसे कोई अन्य उपाय करें। यह बच्चे की नॉर्मल हैबिट हो सकती है। लेकिन यदि मल सख्त है, मल त्याग से पहले रोता है या मल के साथ खून भी आ जाता है तो यह कब्ज की स्थिति हो सकती है। आमतौर पर दूध व मां की खुराक पर ही निर्भर होता है जिसके कारण यह समस्या हो सकती है। फिर भी मां के दूध पर निर्भर बच्चों में कब्ज की समस्या कम होती है। ऊपर या डिब्बे के दूध वाले बच्चों में कब्ज की समस्या ज्यादा देखने में आती है।
छोटे बच्चों को भी कब्ज की समस्या हो सकती है लेकिन सख्त मल को ही कब्ज मानते हैं। नवजात का पेट ज्यादा बार साफ होने को कब्ज नहीं मानते हैं। किसी शिशु का चार दिन में एक बार पेट साफ होगा तो किसी का एक दिन में चार बार। यह उसकी शारीरिक स्थिति के अनुसार हो सकता है। इसे कब्ज मानते हुए अपनी मर्जी से न तो एनिमा लाएं और न ही हरड़ आदि देने जैसे कोई अन्य उपाय करें। यह बच्चे की नॉर्मल हैबिट हो सकती है। लेकिन यदि मल सख्त है, मल त्याग से पहले रोता है या मल के साथ खून भी आ जाता है तो यह कब्ज की स्थिति हो सकती है। आमतौर पर दूध व मां की खुराक पर ही निर्भर होता है जिसके कारण यह समस्या हो सकती है। फिर भी मां के दूध पर निर्भर बच्चों में कब्ज की समस्या कम होती है। ऊपर या डिब्बे के दूध वाले बच्चों में कब्ज की समस्या ज्यादा देखने में आती है।
शिशु को पानी कब पिलाना चाहिए
इस बारे में एक्सपट्र्स का कहना है कि कुदरत ने मां के दूध के रूप में संपूर्ण आहार शिशु के लिए बनाया है। सामान्य परिस्थितियों में छह माह तक उसे सिर्फ मदर फीडिंग ही करानी चाहिए, उसके अलावा कोई भी दूसरी चीजें नहीं देनी चाहिए। ऐलोपैथी के विशेषज्ञों के अनुसार इस अवधि तक बच्चों को न तो घुट्टी दें, न शहद और न ही ग्राइप वाटर।
इस बारे में एक्सपट्र्स का कहना है कि कुदरत ने मां के दूध के रूप में संपूर्ण आहार शिशु के लिए बनाया है। सामान्य परिस्थितियों में छह माह तक उसे सिर्फ मदर फीडिंग ही करानी चाहिए, उसके अलावा कोई भी दूसरी चीजें नहीं देनी चाहिए। ऐलोपैथी के विशेषज्ञों के अनुसार इस अवधि तक बच्चों को न तो घुट्टी दें, न शहद और न ही ग्राइप वाटर।