करीबियों ने बताये ये राज़ – * बापट जी की एक बार एक अंग्रेज से बहस हो गयी , अंग्रेज ने पैसे और गाडी का रौब झाड़ा तो बापट जी ने उसकी गाडी और ड्राइवर दोनों को खरीद लिया। उन्होंने कहा मैं तुम्हे तुम्हारी गाडी का दो गुना दाम देता हूँ और ड्राइवर की तन्खा भी दो गुना में रख लूंगा।
* बापट जी के पास बहुत धन था लेकिन कभी उसका गुरुर नहीं किया। उन्होंने जब अख़बार में ज़रूरतमंदों की दुर्दशा को पढ़ा तो तुरंत सबकुछ छोड़ कर उनकी सेवा करने चले आये। * बापट जी ने अपने परिवार को त्याग कर समाज की सेवा किया। देहदान का फैसला भी खुद ही लिया। अचानक उठकर सिम्स अस्पताल चले आये और खुद ही पेपर में साइन कर देहदान का निर्णय ले लिया।
पद्मश्री दामोदर गणेश बापट का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। शनिवार की सुबह 4 बजे शहर के अपोलो अस्पताल में उनकी मौत हो गई। बापट का जीवन कुष्ट रोगियों के लिए समर्पित रहा। कुष्ट आश्रम में आए हर पीडि़त को अपने ममता उन्होंने का स्पर्श दिया। कुष्ठ आश्रम की स्थापना चांपा के सोंठी में सन 1962 में सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे द्वारा की गई थी, जहां वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता बापट सन 1972 में पहुंचे और कुष्ट पीडि़तों के इलाज और उनके पुनर्वास के लिए प्रकल्पों की शुरूआत की।
परिसर बन गया एक स्वतंत्र ग्राम
दामोदर गणेश बापट के समर्पण का ही नतीजा था कि संस्था परिसर एक स्वतंत्र ग्राम बन गया है। छात्रावास, स्कूल, झूलाघर, कम्प्यूटर प्रशिक्षण, सिलाई प्रशिक्षण, ड्राइविंग प्रशिक्षण, अन्य एक दिवसीय प्रशिक्षण, चिकित्सालय, रुग्णालय, कुष्ठ सेवा, एंबुलेंस, चलित औषधालय एंबुलेंस व कुपोषण निवारण, कृषि, बागवानी, गौशाला, चाक निर्माण, टाटपट्टी निर्माण, वेल्डिंग, सिलाई केंद्र, जैविक खाद, गोबर गैस, कामधेनु अनुसंधान केंद्र, रस्सी निर्माण व अन्य गतिविधि यहां संचालित है। बापट के प्रयास से इस संस्था को अनेक पुरस्कार व सम्मान पहले ही मिल चुके है।
ये है इनका जीवन
बापट मूलत: ग्राम पथरोट, जिला अमरावती (महाराष्ट्र) के थे। नागपुर से बीए व बीकॉम की पढ़ाई पूरी की है। बचपन से ही उनके मन में सेवा की भावना कूट-कूटकर भरी थी। यही वजह है कि वे करीब 9 वर्ष की आयु से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता रहे। पढ़ाई पूरी करने के बाद बापट ने जीवकोपार्जन के लिए पहले कई स्थानों में नौकरी की, लेकिन उनका मन तो बार बार समाज सेवा की ओर ही जाता था।