बिलासपुर

रहस्यमयी है भगवान जगन्नाथ का मंदिर

उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। भगवान जगन्नाथ की इस रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होती हैं।

बिलासपुरJul 07, 2022 / 01:09 am

SATISH PRASAD

क्यों निकाली जाती है ये रथ यात्रा

उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। भगवान जगन्नाथ की इस रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होती हैं। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती है।
क्यों निकाली जाती है ये रथ यात्रा
माना जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा की। बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उन्हें रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल गए। इस दौरान वे अपनी मौसी के घर भी गए जो गुंडिचा में रहती थी। तभी से इस रथ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
जानिए जगन्नाथ मंदिर के कुछ रहस्य
उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की काठ (लकड़ी) की मूर्तियां विराजमान हैं।
मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपना देह त्याग किया तो उनका अंतिम संस्कार किया गया था। उनका बाकी शरीर तो पंच तत्वों में मिल गया लेकिन उनका दिल सामान्य और जिंदा था। कहा जाता है कि उनका दिल आज भी सुरक्षित है। माना जाता है कि उनका यह दिल भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर है और वह आज भी धडक़ता है।

बदली जाती है हर 12वें साल में मूर्तियां
हर 12वे साल बाद जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्ति को बदला जाता है। जब भी इन मूर्तियों को बदला जाता है उस समय पूरे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है। इस दौरान जगन्नाथ पुरी के इस मंदिर के आस पास अंधेरा कर दिया जाता है। 12वें साल में जब ये मूर्तियां बदली जाती है तो मंदिर की सुरक्षा सीआरपीएफ के हवाले कर दी जाती है। किसी का भी प्रवेश इस दौरान वर्जित होता है। अंधेरा होने के बाद कोई भी इस मंदिर में नहीं जा सकता। इन मूर्तियों बदलने के लिए सिर्फ एक पुजारी को मंदिर में जाने की अनुमति होती है। और उसके लिए भी पुजारी के हाथों में दस्ताने पहनाए जाते हैं और अंधेरे के बावजूद आंखों में पट्टी बांधी जाती है ताकि पुजारी भी मूर्तियों को ना देख सके।
ब्रह्म पदार्थ का रहस्य
पुरानी मूर्ति से जो नई मूर्ति बदली जाती है उसमें एक चीज वैसी की वैसी ही रहती है वह है ब्रह्म पदार्थ। इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में डाल दिया जाता है।
आखिर क्या है ये ब्रह्म पदार्थ
ब्रह्म पदार्थ को लेकर यह मान्यता कि अगर इसे किसी ने भी देख लिया तो उसकी तुरंत मौत हो जाएगी। इस ब्रह्म पदार्थ को श्रीकृष्ण से जोड़ा जाता है।
बहुत से पुजारियों का कहना है कि मूर्तियां बदलते समय जब वह ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से नई मूर्ति में डालते हैं तो उन्हें कुछ उछलता हुआ सा महसूस होता है। उन्होंने कभी भी उसे देखा नहीं लेकिन उसे छूने पर वह एक खरगोश जैसा लगता है जो उछल रहा है। जगन्नाथ मंदिर से जब यह रथ यात्रा निकलती है तो जगन्नाथ पुरी के राजा सोने की झाडू लगाते हैं।
क्या है रहस्य का सिंहद्वार
इस मंदिर से जुड़ा एक और रहस्य यह कि इस मंदिर में एक सिंहद्वार है। माना जाता है कि जब आप इस सिंहद्वार से बाहर होते हैं तो आपको समुद्र की लहरों की बहुत तेज आवाज आती है लेकिन जैसे ही आप सिंहद्वार के अंदर प्रवेश करते हैं तो यह आवाजें आना बंद हो जाती हैं।
जगन्नाथ मंदिर के पास ही चिताएं भी जलती हैं, माना जाता है कि सिंहद्वार के अंदर प्रवेश करने से पहले आपको चिताओं की गंध आती है द्वार के अंदर प्रवेश करते ही यह गंध आनी बंद हो जाती है।
कोई भी पक्षी मंदिर के उपर से नहीं उड़ते
इस मंदिर से जुड़ी एक और बात ये कही जाती है कि किसी पक्षी को कभी इस मंदिर के गुंबद में बैठा हुआ नहीं देखा गया। इस मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज आदि को भी उडऩे की मनाही है।
मंदिर की परछाई भी नहीं बनती
इस मंदिर से जुड़ी एक रहस्य यह भी है कि कितनी भी धूप में इस मंदिर की परछाई कभी नहीं बनती।
झंडे का रहस्य
इस मंदिर के ऊपर एक झंडा लगा हुआ है जिसे रोज शाम को बदलाना जरूरी होता ह। इसके पीछे यह मान्यता है कि अगर इस झंडे को नहीं बदला गया तो यह मंदिर आने वाले 18 सालों में बंद हो जाएगा।
रसोई का रहस्य
इस मंदिर का रखोई घर दुनिया के सबसे बड़े रसोई घरों में से एक है। यहां 500 रसोइये और उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में कितने भी भक्त आ जाएं लेकिन कभी प्रसाद कम नहीं पड़ता। लेकिन जैसे ही मंदिर के बंद होने का समय आता है तो यह प्रसाद अपने आप खत्म हो जाता है। यहां बनने वाला प्रसाद 7 बर्तनों में बनता है जिसे एक ही लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है। यहां की खास बात यह है कि इस लकड़ी के चूल्हे पर सबसे पहले सातवें स्थान पर सबसे ऊपर रखे हुए बर्तन का प्रसाद बनकर तैयार होता है ना कि सबसे नीचे रखे हुए बर्तन का।

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