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बिलासपुर

क्या आपको पता हैं बिलासपुर के इन ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में

* न्यायधानी बिलासपुर(HighCourtBilaspur) में हैं अनोखे अजब गजब धरोहर जिसे देख और जानकर हो जाएंगे आप भी हैरान

बिलासपुरMay 07, 2019 / 04:04 pm

Deepak Sahu

temple

क्या आपको पता हैं बिलासपुर के इन ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में

बिलासपुर. छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर(Bilaspur) अपने भीतर कई अद्भुत यादे संग्रह कर रखा है, शासकीय तौर पर सन 1861 में बिलासपुर जिला का निर्माण किया गया तब अंग्रेजो शासन था। बिलासपुर जिला के अंतर्गत आने वाला रतनपुर भी अपने आप में बड़ा महत्व रखता हैं। इतिहास की माने तो कलचुरी वंश के शासक रत्नदेव प्रथम ने 1050 ई. (11 वीं शताब्दी ) में नगर बसाया था यही कारण हैं इस शहर का नाम रतनपुर पड़ा। यह भी कहा जाता है उस काल में इसे कुबेरपुर के नाम से जाना जाता था।

तालाबों की नगरी रतनपुर
मंदिरों का शहर, सांपों की नगरी के बारे में तो लोग जानते हैं, लेकिन तालाबों के शहर को लोग शायद ही जानते हो। धार्मिक स्थल रतनपुर(Ratanpur) को ही तालाबों की नगरी कहते हैं। यहां 157 तालाब हुआ करते थे। वर्तमान में इनकी संख्या 120 है। समय के साथ कुछ तालाबों को मिट्टी से भर दिया गया। आज भी सबसे अधिक तालाब रतनपुर में ही हैं। इसलिए इसे तालाबों का शहर कहा जाता है। इन तालाबों का निर्माण राजा रत्नदेव के समय किया गया था।

प्रत्येक मंदिर के पास तालाब
रतनपुर एक धार्मिक नगरी है। यहां ऐतेहासिक मंदिर तो बहुत हैं। इसी तरह यहां तालाब भी हैं। ज्यादातार मंदिरों के पास ही तालाब हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रद्धालु मंदिर में स्नान कर प्रवेश करे इस उदेश्य से मंदिरों के पास तालाब बनवाए गए थे। आज भी इस मान्यता को श्रद्धालु मानते हैं।

रतनपुर के अन्य स्थल

1. महामाया मंदिर

माना जाता है रतनपुर के महामाया मंदिर(Mahamaya Mandir) का निर्माण 1050 ई. में किया गया हैं और इसके निर्माणकर्ता रत्नदेव प्रथम थे। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर के अंदर जाकर लोग महामाया माता का दर्शन कर सकते है। वैसे तो सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मां महमाया देवी मंदिर के लिए नवरात्र में मुख्य उत्सव, विशेष पूजा-अर्चना एवं देवी के अभिषेक का आयोजन किया जाता है।
mahamaya mandir

2. रामटेकरी मंदिर
यह अद्भुत स्थापत्य कृति एक पहाड़ी पर है जो चारो ओर से हरियाली से घिरा हुआ है। राम टेकरी मंदिर रतनपुर से 3 km की दुरी पर स्थित है। भगवान विष्णु और काल भैरव के हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तिया मंदिर में मौजूद हैं। इस मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में बिम्बाजी भोसले द्वारा कराई गयी थी। मंदिर की वास्तुकला काफी प्रभावशाली और आकर्षक है।

3. देवरानी और जेठानी मंदिर
बिलासपुर से 28 किमी दूर मनियारी नदी के तट पर तालागांव स्थित है (जिसे अमेरी कापा के रूप में भी जाना जाता है)। तालगांव छत्तीसगढ़ के प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में है। यहाँ 6वी शताब्दी की रूद्र शिव की प्रतिमा भी पाई गईं है। यहाँ 4 व 5 शताब्दी के मंदिर स्थित है जिन्हे देवरानी-जेठानी मंदिर कहते है। देवरानी और जेठानी मंदिर के बारे मे सबसे पहले Mr. J. D. Wangler के द्वारा जानकारी मिली थी जो की1878 में मेजर जनरल कनिंघम के एक सहयोगी थे ।
देवरानी मंदिर जेठानी मंदिर से छोटी है जो की भगवान शिव को समर्पित है। देवरानी और जेठानी मंदिरों के बीच की दूरी लगभग 15 किमी है।
जेठानी मंदिर(Jethani Temple) के प्रवेश द्वार के तल पर एक सुंदर चंद्रशिला का आधार प्रदर्शन किया गया है । आंतरिक कक्ष की सुरक्षा मे लगे विशाल हाथी की मूर्तियाँ इसे और अधिक शाही बनाने बनाती है । ताला में स्थित देवरानी और जेठानी मंदिर अपनी सुंदर मूर्तियों, कला और पृथ्वी के गर्भ से खुदाई से मिले दुर्लभ रुद्र शिव की मूर्ति के लिए बहुत प्रसिद्ध है।

dewrani mandir

4. रुद्र शिव की अष्टमुखी प्रतिमा
रूद्र शिव की विलक्षण प्रतिमा तालागांव में पुरातात्विक उत्खनन से 6वीं शताब्दी ई. में लगभग 5 टन वजनी शिव की विशिष्ट मूर्ति मिली है। यह मूर्ति पशुपति शिव का प्रतीक है। नरमूण्ड धारण किए हुए पशुओं का चित्रण युक्त यह मूर्ति विशेषता लिए हुए हैं। रूद्र शिव : विश्व की अद्भुत प्रतिमा तालागांव देवरानी मंदिर के द्वार पर उत्खनन के दौरान शिव के रौद्र रूप की अनुपम कृति युक्त एक प्रतिमा टीले में दबी हुई प्राप्त हुई है जिसका नामकरण एवं अभिज्ञान आज तक नहीं हो सका है।

ram mandir
इसे सन 1987 में निकाला गया था। इस प्रतिमा को वास्तु इतिहास की अनहोनी कहा जा सकता है। इस प्रतिमा का विवरण इस प्रकार है प्रतिमा के 11 अंग विभिन्न प्राणियों से निर्मित किये गए हैं यह 7 फुट ऊँची, 4 फूट चौडी तथा 6 टन वजन की लाल बलुए पत्थर की बनी है इस प्रतिमा को अभी तक रूद्र शिव, महारुद्र, पशुपति, अघोरेश्वर, महायज्ञ बिरूवेश्वर, यक्ष आदि नाम दिये जा चुके है।
baba bhairav
पांचवी छठवी सदी की यह कलाकृति शरभपूरी शासको के काल की अनुमानित है क्योकिं यहाँ छठी सदी के शरभपूरी शासक प्रसन्नमात्र का उभारदार रजित सिक्का भी मिला है। साथ ही कलचुरी रत्नदेव प्रथम व प्रतापमल्ल की एक रजत मुद्रा भी प्राप्त है, मूल प्रतिमा देवरानी मंदिर तालाग्राम परिसर. में सुरक्षित है
इसके अलवा सती चौरा, लखनी मंदिर , भैरोबाबा मंदिर, तुलजा भवानी मंदिर एवं मल्हार भी घूमने जा सकते हैं

Lakhni mandir

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