अगहन माह में गुरुवार का अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि महालक्ष्मी की पूजा करने सेे धन की कमी नहीं होगी। परम्परानुसार पूजा करने से पहले अपना मुंह 16 बार धोएं, 16 लडिय़ों वाली एक डोरी बनाएं, मंडप को केले के पत्ते और आंवले से सजाएं और दीपक जलाएं। दोपहर के समय चावल के पकवान का भोग लगाएं। शाम को आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें। अब 28 नवंबर से शुरू अगहन महीने में भगवान विष्णु की पत्नी महालक्ष्मी की पूजा की परंपरा निभाई जा रही है। अगहन माह के सभी गुरुवार को घर-घर को रंगोली से सजाकर सुबह से शाम तक तीन बार महालक्ष्मी की पूजा की जाएगी। घर के प्रवेश द्वार से पूजा स्थल तक चावल के आटे से मां लक्ष्म के पैरों के निशान बनाएं
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चावल के आटे से रंगोली सजाएं रतनपुर स्थित सिद्ध तंत्र पीठ भैरव मंदिर के मुख्य पुजारी पं जागेश्वर अवस्थी ने बताया कि 30 नवंबर से शुरू होने वाले अगहन गुरुवार को आंगन और मुख्य द्वार पर रंगोली सजाएं। दीपक जलाएं। मुख्य द्वार से लेकर पूजा स्थल तक चावल के आटे से मां लक्ष्मी के पैरों के निशान बनाएं। कलश स्थापित करें, आंवले और आम के पत्तों से बने तोरण को सजाएं और देवी लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। कटोरे में धान रखें और दीपक जलाएं। देवी लक्ष्मी का आह्वान करें और उन्हें अपने घर में आमंत्रित करें। पूजन सामग्री पूजा के लिए नारियल, केला, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, सीताफल, धान की बाली, लौकी, आंवला, पान, कपड़ा, टोकरी, प्याज, तेल, घी, चीनी, चावल का प्रयोग करें। ऐसे करें पूजा घर और आंगन को ढंककर रखें ।चौकों को गाय के गोबर से और चावल के आटे को पानी में घोलकर भरें। मुख्य द्वार को रंगोली से सजाएं। आंगन से लेकर पूजा घर तक मां लक्ष्मी के पैरों के निशान, स्वस्तिक, सांप आदि के चित्र बनाएं।दोपहर के समय चावल के पकवान का भोग लगाएं. शाम को आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।
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इन तारीखों को पड़ेगा अगहन गुरुवार – पहला गुरुवार 30 नवंबर– दूसरा गुरुवार 07 दिसंबर
– तीसरा गुरुवार 14 दिसंबर
– चौथा गुरुवार 21 दिसंबर सूर्योदय से शाम तक करें पूजा महिलाओं को गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले स्नन कर लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लें और मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। दोपहर 12 बजे चावल की खीर, अनरसा, बाबरा, चावल का चीला आदि पकवानों का भोग लगाएं। शाम को दोबारा पूजा करके प्रसाद ग्रहण करें और भोजन करें।