बिलासपुर

दूध व मछली एक साथ खाने से नहीं हैं ऐल्बिनिजम का कोई लेना-देना, इस कारण से होती हैं यह बीमारी

International Albinism Awareness Day 2023: डॉक्टरों के अनुसार लोकल ऐल्बिनिजम के मरीजों की संख्या अधिक होती है। लेकिन इस बीमारी को लेकर आमजन में अनेक तरह की भ्रांतिया हैं।

बिलासपुरJun 13, 2023 / 04:48 pm

Khyati Parihar

दूध व मछली एक साथ खाने से नहीं हैं ऐल्बिनिजम का कोई लेना-देना

Chhattisgarh News: बिलासपुर। रंगहीनता (ऐल्बिनिज़म) एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो जन्म के वक्त से ही देखी जा सकती है। यह मुख्यत: दो तरह की होती। लोकलाइज जो शरीर के सीमित हिस्सों पर और दूसरा जनरलाइज जो पूरे शरीर पर देखी जाती है। डॉक्टर्स के अनुसार जनरलाइज ऐल्बिनिजम के सालाना महज 20 से 25 ही केस सामने आ रहे हैं।
डॉक्टरों के अनुसार लोकल ऐल्बिनिजम के मरीजों की संख्या अधिक होती है। लेकिन इस बीमारी को लेकर आमजन में अनेक तरह की भ्रांतिया हैं। जैसे मछली और दूध एक साथ खा लेने से यह बीमारी हो जाती है। यह गलतफहमी है। इसकी असल वजह हमारे शरीर में बनने वाला केमिकल मेलेनिन है। ऐल्बिनिजम तब होता है, जब मानव शरीर भोजन को मेलेनिन में परिवर्तित करने में विफल रहता है। यह हमारी त्वचा में पड़ जाने वाला एक पिगमेंटेशन है, जिसका मुख्य काम शरीर पर सूर्य से आने वाली युवी किरणों से रक्षा करना है। हर साल 13 जून को ऐल्बिनिज़म जागरुकता दिवस मनाया जाता है। जिसका मकसद इस समस्या पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने और इसके प्रति लोगों को जागरुक करना होता है।
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माता-पिता से बच्चों में…

जांच में यह पाया गया है कि यह सबसे कॉमन उन बच्चो में देखने को मिलता है जिनके माता-पिता दोनों में रिसेसिव एलील्स (जींस) के जैविक विरासत हों। कुछ दुर्लभ रूप केवल एक माता या पिता के जेनेटिक्स से भी यह बच्चों को हो सकता है। यह बीमारी आमतौर पर दोनों लिंगों में समान रूप से होती है।
मेलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव में होती है यह बीमारी…

मेलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव के चलते त्वचा, बाल और आंखों में रंजक या रंग का सम्पूर्ण या आंशिक अभाव देखा जाता है। ऐल्बिनिजम, वंशानुगत तरीके से रिसेसिव जीन एलील्स को प्राप्त करने के परिणामस्वरूप होता है। इससे प्रभावित मरीजों में फोटोफोबिया यानी प्रकाश की असहनीयता और ऐस्टिगमैटिज्म यानी साफ दिखाई न देने की समस्या आती है। इससे पीड़ित मरीजों को धूप से झुलसने और त्वचा कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।
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यह ऑटोइम्यून से जुड़ी बीमारी है…

यह दो तरीके का होता है एक लोकलाइज, यह शरीर के अलग-अलग हिस्सों में हो सकता है। दूसरा जनरलाइज जो पूरे शरीर में पाया जाता है। यह ऑटोइम्यून से जुड़ी बीमारी है, इसलिए इसके इलाज में कारकों की खोज कर उसके अनुसार दवाएं दी जाती हैं, जिसमें कुछ मलहम, टेबलेट्स शामिल हैं। इसके अलावा कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट भी किए जाते हैं। जिससे व्यक्ति आम तरह से जीवन जी सकता है।
-डॉ. सीएस उइके, एमडी बिलासपुर।
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