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बिलासपुर

क्या ऐसे पूरा होगा अरपा को टेम्स नदी बनाने का सपना, देखें विडियो

निगम प्रशासन और सीवरेज के ठेकेदारों ने उसी अरपा नदी को कचरे और मलबे से पाट डाला, जिसे नगरीय प्रशासन मंत्री ने लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर विकसित करने का सपना देखा था

बिलासपुरJul 14, 2017 / 05:42 pm

Kajal Kiran Kashyap

arpa river

शैलेंद्र पाण्डेय/बिलासपुर. अरपा नदी को लंदन के टेम्स नदी की तर्ज पर विकसित करने का सपना देखकर अरबों रुपए का अरपा प्रोजेक्ट और अरपा डायवर्सन प्रोजेक्ट तैयार किया गया। लेकिन हाल ये कि यहां कचरा और मलबा डंपिंग तक नहीं रोक पा रहे हैं। सीवरेज की खुदाई से निकले मलबे और शहर भर के कचरे से आधी नदी को पाट डाला।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश और पर्यावरण संरक्षण का हवाला देकर गरीब मूर्तिकारों से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां जब्त करने वाला निगम प्रशासन खुद एनजीटी के निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहा है। ग्रीन ट्रिब्यूनल वर्ष 2015 से नगरीय निकायों को लगातार आदेश जारी कर चेतावनी दे रहा है कि वे नदी, तालाब या अन्य जलस्रोतों के आसपास कचरा और मलबा डंंप न कराएं। लेकिन निगम प्रशासन और सीवरेज के ठेकेदारों ने उसी अरपा नदी को कचरे और मलबे से पाट डाला, जिसे नगरीय प्रशासन मंत्री ने लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर विकसित करने का सपना देखा था। इसके लिए 18 अरब 58 करोड़ की योजना बनाई गई है। हालाकि यह योजना अभी तक कागज पर ही चल रही है, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च
हो चुके हैं।

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ये थी पूरी योजना : इस योजना के तहत नदी में देवरीखुर्द से लेकर कुदुदंड तक 24 करोड़ की लागत से छह एनीकट बनाए जाने थे। गंदे पानी को नाला बनाकर बाहर ही बाहर दोमुहानी के आगे ले जाया जाना था। लेकिन योजना ठप पड़ गई। एनीकट का आज तक अता-पता नहीं है। फाइल धूल खा रही है।

अरपा डायवर्सन भी अधूरा : संयुक्त छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ श्रीधर मिश्रा ने सन् 1975-76 में अरपा नदी में बारहों माह जलभराव सुनिश्चित कराने के लिए अरपा डायवर्सन योजना बनाकर इसके लिए सवा करोड़ रुपए स्वीकृत कराए थे। योजना के तहत बिल्हा ब्लाक के 28-30 गांवों तक नहर बनाकर सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति की जानी थी। 27 साल बाद वर्ष 2002-03 में फिर इसके लिए प्लानिंग की गई। तत्कालीन कलेक्टर आरपी मंडल और अरपा विकास समिति के अध्यक्ष सैय्यद जफर अली के आव्हान पर जनसमूह ने यहां बहती नदी को रेत की बोरियां डालकर श्रमदान करके बांधा। इसी बांध के पास देवरीखुर्द बरखदान में 2003 में चेकडेम बनकर तैयार हुआ।

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