Bilaspur High court: 50 वर्ष की आयु पूरी होने पर अनिवार्य रूप से कर दिया गया सेवानिवृत्त
कोर्ट ने कहा कि सरकार को सरकारी कर्मचारी के संपूर्ण सेवा रिकॉर्ड, चरित्र पंजिका और गोपनीय रिपोर्ट पर विचार करने के बाद ही अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए। प्रकरण के अनुसार कबीर नगर रायपुर निवासी नागेन्द्र बहादुर सिंह को खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग में ड्राइवर के पद पर 30 अक्टूबर 1993 को दैनिक वेतनभोगी के रूप में नियुक्त किया गया था। 27 अगस्त 2010 को उसकी सेवाएं ड्राइवर के पद पर पक्की कर दी गईं। जून 2012 में याचिकाकर्ता के पद का नामकरण हुआ और ड्राइवर (भारी वाहन) में बदल दिया गया। (Chhattisgarh News) उसके बाद, याचिकाकर्ता को 5वें वेतनमान का लाभ दिया गया। इसी बीच 17 नवम्बर 2017 को याचिकाकर्ता को 50 वर्ष की आयु पूरी करने के कारण अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया।
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इसके खिलाफ नागेन्द्र बहादुर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें कहा कि अधिकारी याचिकाकर्ता की पूरी सेवा का आंकलन करने में विफल रहे। उसका आचरण सेवा के दौरान अच्छा रहा और उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी। वह दलील दी गई है कि प्रतिवादी अधिकारियों ने नियमों का पालन नहीं किया है।कोर्ट ने पाया- कर्मचारी का ग्रेड औसत से कम
Bilaspur High court: कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का समग्र ग्रेड औसत या औसत से नीचे था और पैरा क्रमांक 8 में तैयार चार्ट से भी यही स्पष्ट है। इसलिए राज्य के प्राधिकारियों द्वारा कर्मचारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का निर्णय लिया जा सकता था। साथ ही याचिकाकर्ता ने 50 वर्ष आयु भी पूरी कर ली है। कानून का सुस्थापित सिद्धांत है भी कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश है यह कोई सज़ा नहीं है और इसके साथ कोई कलंक भी नहीं जुड़ा है। यह भी स्पष्ट है कि ऐसी सेवानिवृत्ति के संबन्ध में प्राकृतिक न्याय के कोई सिद्धांत नहीं हैं। क्योंकि इस मुद्दे पर समीक्षा समिति द्वारा गहनता से विचार किया गया इसके बाद यह निर्णय लिया गया। (Chhattisgarh News) कोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का भी उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश दंड नहीं है।