सन्नो (45) ने छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम 1915 की धारा 34(1)(ए) के तहत अपनी सजा को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने उन्हें 3 लीटर देशी महुआ शराब रखने के आरोप में दोषी ठहराकर तीन महीने के कठोर कारावास और 5,000 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अपील करने पर, सजा को घटाकर एक महीना कर दिया गया, लेकिन दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया।
Bilaspur High Court: पुलिस की जांच में मिली यह खामियां
- – सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता आरोपी महिला की ओर से मामले में कई कमियों को उजागर किया गया।
– जब्ती मेमो में विसंगति मिली। एफआईआर दर्ज होने से पहले ही जब्ती मेमो में अपराध संख्या का उल्लेख था, जिससे दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर संदेह उत्पन्न हुआ।
– जब्त की गई शराब को ठीक से सील नहीं किया गया था, और जब्ती मेमो पर कोई नमूना सील नहीं लगाई
– जब्ती के 10 दिन बाद शराब को परीक्षण के लिए भेजा गया, देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
– अभियोजन पक्ष आबकारी अधिनियम के तहत अनिवार्य रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के पालन को साबित करने में विफल रहा।
- – कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में विसंगतियाँ पाईं। कुछ गवाहों के बयान तो प्रकरण के उलट थे
Bilaspur High Court: आबकारी मामलों में उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन जरूरी
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि ये खामियाँ सामूहिक रूप से मामले पर उचित संदेह पैदा करती हैं। पिछले निर्णय (सुरेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2006) का हवाला देते हुए कोर्ट ने आबकारी मामलों में उचित प्रक्रियाओं का पालन करने के महत्व को पुनः स्पष्ट किया। कोर्ट ने आदेश दिया कि सन्नो द्वारा भुगतान किया गया कोई भी जुर्माना उसको वापस किया जाए। साथ ही आबकारी मामलों में उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने के महत्व को भी कोर्ट ने रेखांकित किया।