हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पंजाब-हरियाणा का आदेश छत्तीसगढ़ में लागू नहीं किया जा सकता। सुनवाई के दौरान इस बात की भी मुहर लग गई कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई फैसला ही नहीं दिया था। जबकि उन्होंने पंजाब सरकार की विशेष याचिका खारिज कर दी थी।
Bilaspur High court: ये कहा हाईकोर्ट ने
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एजी प्रफुल्ल भारत से कहा कि एनआरआई कोटे के लिए मेडिकल प्रवेश नियम 2018 लागू कीजिए। चाहे तो शासन अगले सत्र के लिए एनआरआई कोटे में प्रवेश संबंधी नियमों में बदलाव कर सकता है। जज ने ये भी कहा कि पहले राउंड का प्रवेश सही और 24 सितंबर के बाद छात्रों का प्रवेश गलत, ऐसा नहीं हो सकता। एक सत्र में दो अलग-अलग नियम लागू नहीं किया जा सकता।यह था मामला
छात्र अंतश तिवारी व एनआरआई कोटे के 40 अन्य छात्रों ने दो वकीलों के माध्यम से राज्य शासन के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें 24 सितंबर के बाद प्रवेशित सभी छात्रों के दस्तावेजों की जांच कर सही नहीं पाए जाने पर प्रवेश रद्द करने को कहा गया था। इसमें कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन कार्यालय ने एजी के हवाले से सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी बताया था। हकीकत में यह सुप्रीम कोर्ट के बजाय पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश था। सुप्रीम कोर्ट ने जरूर एनआरआई कोटे में दूर के रिश्तेदारों के प्रवेश को बिजनेस व फर्जीवाड़ा करार दिया था। यह फैसला नहीं बल्कि सीजेआई समेत अन्य जज का कमेंट था।
पत्रिका की खबरों पर लगी मुहर, लोग फैलाते रहे भ्रम
पत्रिका ने एनआरआई कोटे को लेकर लगातार सही खबर छापी। लाेग भ्रम फैलाते रहे, लेकिन पत्रिका टस से मस नहीं हुआ। 21 व 22 अक्टूबर के अंक में, तथा इससे पहले लगातार, यह बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर भ्रमजाल फैलाया जा रहा है। उन तीन बिंदओं को भी छापा गया, जिसमें शासन के आदेश पर सवाल उठ रहे थे। यह भी पढ़ें
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हाईकोर्ट के फैसले में पत्रिका की खबर शत-प्रतिशत सही साबित हुई है और छात्रों को न्याय मिला। पत्रिका यह भी भंडाफोड़ कर चुका है कि एनआरआई कोटे में किस तरह दलालों की चल रही है। प्रवेश में गड़बड़ी नई बात नहीं है। जब से प्रवेश नियम में एनआरआई स्पांसर्ड शब्द जोड़ा गया है, तब से इसमें खेल चल रहा है। तब एडमिशन में हो रहे गड़बड़झाला के खिलाफ आवाज उठाने वाले चुप थे। पत्रिका शुरू से सवाल उठा रहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का आदेश होता तो केवल छत्तीसगढ़ में ही क्यों बवाल हो रहा है? बाकी राज्यों में क्यों नहीं? जबकि मेडिकल प्रवेश नियम देशभर में एक है।