प्रज्ञा ने बताया कि पढ़ाई के लिए तो पूरे दिन ही बैठती लेकिन सात से आठ घंटे ही पढ़ाई हो पाती थी। जब परीक्षा होती थी, तो उससे कुछ दिन पहले मन में थोड़ी घबराहट होती थी, लेकिन उस समय मम्मी-पापा पास आकर बैठ जाते थे, तो हौसला बढ़ जाता था। इसके अलावा परिवार और दोस्तों का भी काफी सहयोग रहा। काफी लकी थी, जो मुझे सभी का सहयोग मिला। बाकी मैं युवाओं को यही कहना चाहूंगी कि आप आगे आएं और पढ़ें। मेरा भी आगे आने वाले समय में शिक्षा को बढ़ावा देने पर ही अधिक फोकस रहेगा।
साल में चार बार आते हैं गांव
प्रज्ञा के पिता ने बताया कि आज भी गांव से बहुत प्यार है। साल में चार बार पूरे परिवार के साथ नौरंगदेशर आते ही हैं। इससे सभी से मिलना हो जाता है। प्रज्ञा और उनका परिवार अभी गुड़गांव में रह रहा है।