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ऐसे निभाते हैं परंपरा
विगत चार दशकों से इस परंपरा का निर्वहन कर रही हेमलता व्यास के अनुसार दीपावली के अगले दिन सुबह जब घर के सदस्य नींद में सो रहे होते हैं, उस समय पहले घर में झाडू लगाकर कचरे को छाजले में एकत्र किया जाता है। इस कचरे को घर से बाहर किसी चौराहे पर अथवा मुख्य मार्ग पर डाल दिया जाता है। वापस आने पर घर के मुख्य द्वार के पास से थाली बजाते हुए घर के आंगन तक पहुंचती हैं। लक्ष्मी आगमन के लिए प्रसन्नता व्यक्त की जाती है। छाजले को लकड़ी से कूटा जाता है।
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शास्त्रों में उल्लेख
ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक ओझा नानगाणी के अनुसार, शास्त्र वचनों के आधार पर यह कार्य महिलाओं की ओर से घरों से अलक्ष्मी के निस्तारण व लक्ष्मी के आगमन के भाव से किया जाता है। इस संदर्भ का उल्लेख – अलक्ष्मी निष्कासनमिति – एवं गते निशीथे तु जने निद्रान्धलोचने। तावन्नगर नारीभि: शूर्पडिण्डिम वादनै:। निष्कास्यते प्रह्ष्टाभिर लक्ष्मी: स्वगृहाग्डणात। आदि शास्त्रवचन में मिलता है। ब्रजेश्वरलाल व्यास के अनुसार निर्णयसिन्धु -द्वितीय परिच्छेद में अलक्ष्मी नि:सारण के लिए महिलाओं की ओर से निभाई जाने वाली इस परंपरा का उल्लेख मिलता है।