भागीरथ ज्याणी बज्जू. एक तरफ शहर के निकट व बड़े मेलों के आयोजन को लेकर जिला प्रशासन सक्रिय हो जाता है और मेलार्थियों को सुविधाएं देने को लेकर लाखों खर्च कर देता है। जबकि उपखण्ड क्षेत्र में तीन दिन में दो बड़े मेले भरेंगे, लेकिन यहां जिला प्रशासन की ओर से सुविधा के नाम पर शून्य है।
बज्जू कस्बे से करीब 40-45 किलोमीटर दूर चारणवाला ब्रांच की 80 आरडी पर लोकदेवता नखत बन्ना व 35 किलोमीटर दूर कोलासर के पास एक हजार आरडी पर लोकदेवता भतूतासिद्ध मेले में ना केवल स्थानीय बल्कि कई राज्यों व प्रदेश के जिलों से तीन दिन में तीन लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है, लेकिन प्रशासन की ओर से सुविधाओं के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। मेले में स्थानीय लोगों का कम सक्रिय होना व प्रशासन का ध्यान इन मेलों की ओर नहीं होने से दोनों मेले गुमनाम साबित हो रहे हैं।
यहां से पहुंचते श्रद्धालु मेलों में हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, मध्यप्रदेश के अलावा राज्य के जिले विशेषकर श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जोधपुर, फलौदी, बाड़मेर, जैसलमेर, सीकर, अनूपगढ़ सहित एक दर्जन से ज्यादा जिलों से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इन मेलों में ठहरने के नाम पर कोई सुविधा नहीं होने से लोग धोरों पर सोते नजर आते है।
खुले में शौच को मजबूर दोनों मेले पंचमी व सप्तमी को भरते हैं। इसमें मेलों में सार्वजनिक शौचालय की सुविधा तक लोगों को उपलब्ध नही होती है, जिससे श्रद्धालु खुले में शौच करने को मजबूर होते हैं। लाखों तादाद में लोग मंदिर से एक किलोमीटर दूर खुले में स्वच्छ भारत के नियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं और गंदगी फैला रहे है। इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नही है।
गंदला पानी पीने को विवश इन मेलों में पीने के पानी तक की माकूल व्यवस्था नहीं है। इस पर मेले में महंगे दामों से पानी की बोतल खरीदनी पड़ती है या फिर नहर से आया गंदला पानी ड्रम से निकाल कर पीना पड़ता है।
सफाई व्यवस्था के नाम पर कोई बजट नहीं दोनों मेलों में साफ सफाई को लेकर भी कोई प्रबंध नहीं है। मेले समाप्ति के बाद तो कई महीनों तक गंदगी जमा रहती है। विशेषकर पॉलीथिन उड़ उड़कर खेतों में चला जाता है तो रोही में निराश्रित पशु खाकर बीमार हो जाते हैं।