पूजन, आरती व भोग के लिए खुलता है ताला मंदिर पुजारी श्याम सुंदर व रामरतन देरासरी बताते हैं कि देवी प्रतिमा के पूजन, आरती और भोग अर्पित करने के दौरान ही गर्भगृह का ताला खोला जाता है। गर्भगृह के द्वार पर जाली का गेट लगा है। श्रद्धालु इसी जाली से देवी प्रतिमा का दर्शन करते हैं। गर्भगृह में केवल पुजारी ही प्रवेश करते हैं। श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित है। मंदिर पुजारी के अनुसार, रियासतकाल से यह परंपरा चल रही है। संभव है उस दौर में सुरक्षा की दृष्टि से यह व्यवस्था प्रारंभ की हो। देश की आजादी के बाद से अब तक यह व्यवस्था चल रही है।
चांदी से निर्मित,हाथों में शस्त्र मंदिर में स्थापित मां नागणेचीजी की प्रतिमा चांदी से बनी हुई है। देवी के हाथों में शंख, चक्र, गदा, भाला, तलवार, पाश सहित अनेक शस्त्र हैं। प्रतिमा के दोनों तरफ देवी के वाहन सिंह भी विराजमान हैं। तीन वर्ष पहले मंदिर में संगमरमर से निर्मित एक और प्रतिमा स्थापित की गई। नागणेचीजी के मंदिर के पास ही चामुण्डा देवी का भी मंदिर है।
राठौड़ों की कुल देवी इतिहासकार जानकी नारायण श्रीमाली के अनुसार, देवी का नाम चक्रेश्वरी भी है। नागाणा देवी के रूप में प्रसिद्ध हैं। देवी के अठारह हाथ हैं। सिर पर नाग के फन हैं। हाथों में शस्त्र हैं। वर्तमान लक्ष्मीनाथ मंदिर परिसर बीकानेर नगर स्थापना के समय पहला गढ़ था। यह सौभाग्यदीप के रूप में प्रसिद्ध रहा। राव बीका व उसके बाद कई राजाओं ने इसी स्थान से शासन किया। गढ़ की स्थापना के समय नगर संस्थापक राव बीका ने अपनी कुल देवी नागणेचीजी तथा चामुण्डा देवी के मंदिर यहां स्थापित किए थे।