बीकानेर

कैल्कुलेटर से भी तेज थी गणना, पलक झपकते ही हिसाब सामने

शहर में रियासत काल से देश की आजादी के बाद कुछ दशकों तक मारजा ​शिक्षा पद्धति का अ​धिक महत्व रहा। ग​णित विषय पर आधारित इस ​शिक्षा पद्धति ने मातृभाषा में दी जाने वाली और ग​णित विषय की बारीकियों के चलते विशेष प्रभाव जमाया। इस ​शिक्षा पद्धति से हजारो बच्चे ​शि​क्षित हुए। आज भी सैकड़ों लोग ऐसे है जो अब वरिष्ठजन की श्रेणी में है, लेकिन इस ​शिक्षा पद्धति से प्राप्त की ​शिक्षा के बल पर ग​णित के हिसाब किताब और गणना में कैल्कुलेटर को पीछे छोड़ते है। पहाड़े, माळनी इसमें प्रमुख रही।

बीकानेरDec 22, 2024 / 11:47 pm

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बीकानेर. अगर यह कहा जाए कि गणित की ऐसी गणना जो पलक झपकने से पहले ही बिना किसी यांत्रिक मदद के हल हो जाए, दो शायद विश्वास करना मुश्किल होगा। लेकिन यह हकीकत है। मारजा शिक्षा पद्धति में पढ़े लोग आज भी मुंहजुबानी पल भर में हिसाब-किताब कर सभी को आश्चर्य चकित कर देते हैं। बचपन में स्लेट-बर्तना से सीखे पहाड़े, सवाई, डेढ़ा, ढाया, ऊंठा, ढुंचा, पूणा के पहाड़े और पारम्परिक गणितीय शैली उस दौर की श्रेष्ठ गणित शिक्षा प्रणाली का प्रमाण बनी हुई है।इस शिक्षा पद्धति से पढ़े हुए लोग आज भी मौजूद है, जो अपने मारजाओं से प्राप्त हुई गणित की शिक्षा से शिक्षित हुए है व गणित में अपनी पहचान रख रहे है।
पाटी, बर्तना…खर्च कुछ नहीं

मारजा पद्धति में शिक्षण सामग्री के नाम पर केवल पाटी (स्लेट) और मिट्टी से बना बर्तना ही था। विद्यार्थी 1 से 100 तक गिनती लिखने के साथ 2 से 40 तक पहाड़े लिखते थे। वहीं पारम्परिक सवाया, डेढ़ा, ढाया, ऊंठा, ढुंचा, पूणा के पहाड़ों सहित माळनी होती थी। बड़ा से बड़ा जोड़, गुणा, भाग, घटाना, वर्गमूल आदि की गणना पाटी अथवा पहाड़ों के माध्यम से ही होती थी।
सौ सिलंगी मातादसे हजार…

आज किसी से कहा जाए कि 33 को 33 से गुणा करने और 100 को 100 से गुणा करने पर कितना आएगा, तो संभव है कैल्कुलेटर का उपयोग करना पड़े, लेकिन मारजा शिक्षा प्रणाली में पढ़े बच्चे (जो आज 50 अथवा इससे अधिक आयु के हो चुके हैं) बिना कैल्कुलेटर के ही इनका हल बता सकते हैं। मारजा पद्धति में 33 को 33 से गुणा करने के लिए ‘तेतिया खेतिया दसे नयासी’ अर्थात 1089 आए। इसी प्रकार 100 को 100 से गुणा करने के लिए ‘सौ सिलंगी माता दसे हजार’ अर्थात दस हजार होंगे।
मारजा पद्धति में सभी बच्चे एक साथ अध्ययन करते थे। पहाड़े बोलना अर्थात माळनी नियमित क्रम था। सभी बच्चों को एक साथ माळनी बोलनी अनिवार्य थी। नियमित रूप से माळनी जरूरी थी। माळनी सस्वर, पारम्परिक शब्दों और हाव -भाव के साथ पूर्ण होती थी। कठोर अनुशासन, नियमित उपस्थिति, मंगलवार को पूजन औश्र प्रसाद का वितरण मारजा स्कूल के नियमों में शामिल थे।
इन्होंने किया हजारों बच्चों को तैयार

वरिष्ठ नागरिक ईश्वर महाराज छंगाणी बताते हैं कि मारजा के रूप में शिवनाथा मारजा, फागणिया मारजा, लावरिया मारजा, चम्पा मारजा, आदू मारजा, गिरधर मारजा, बैजिया मारजा, मूलिया मारजा, छीछी मारजा, फकीरा मारजा, छगन मारजा, बृजलाल मास्टर सहित कई मारजाओं ने हजारों शिष्यों को गणित में दक्ष किया।
… अब एक भी ऐसा स्कूल नहीं

बीकानेर शहर में कभी परवान पर रही मारजाओं के स्कूल अब समाप्त हो चुके हैं। मारजा पद्धति से पढ़े सैकड़ों लोग आज भी मौजूद हैं। इस पद्धति से पढ़ाने वाले अधिकतर मारजा भी अब इस दुनियां को छोड़ कर जा चुके हैं। इक्का-दुका ही बचे हैं, जो पारंपरिक पहाड़ों के स्वर, लय और पारंपरिक शैली को जानते हैं।
टॉपिक एक्सपर्ट – मातृ भाषा व बाल मन के अनुकूलथी यह पद्धति, इसे अपनाया जाना चाहिए

बच्चों के जीवन में प्रारंभिक शिक्षा महत्वपूर्ण होती है। यह मातृ भाषा में तथा सरल, रोचक और मनोरंजन पूर्ण होनी चाहिए। मारजा शिक्षा पद्धति शत-प्रतिशत मातृ भाषा पर आधारित थी। पहाड़े और गणितीय हिसाब-किताब रोचक व मनोरंजक होते थे। यह बच्चों के मन मस्तिष्क में गहरे तक पैठ बनाते थे। आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ-साथ मारजा शिक्षा पद्धति में पढ़ाई जाने वाले गणित व उसकी शैली को अपनाया जाना चाहिए। यह अधिक कारगर और बच्चों के मन मस्तिष्क का विकास करने वाली है।
बृज लाल पुरोहित, वरिष्ठ ग​णित ​शिक्षक

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