यहां रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं और अपने मन की बात भगवान गणेश के कान में कहते हैं। इसलिए यह मंदिर कान गणेश के रूप में भी प्रसिद्ध है।
मंदिर में भगवान गजानंद बाल स्वरूप में और रक्तवर्ण में हैं। गणेश चतुर्थी के साथ प्रत्येक बुधवार को मंदिर में मेले सा माहौल रहता है।
सवा सौ साल प्राचीन
मंदिर पुजारी श्याम गहलोत के अनुसार कान गणेश मंदिर लगभग 125 साल प्राचीन है।
भगवान गणेश की प्रतिमा लाल पत्थर से बनी हुई है। प्रतिमा आसन मुद्रा में है। नित्य सिंदूर का चोला चढ़ता है व मालीपाना से पूजन होता है। प्रतिमा में ऊपर की ओर सूर्य तथा चन्द्रमा भी हैं। वहीं प्रतिमा के ऊपर की ओर उचिष्ठ सिद्ध मंत्र भी है।
एक दंत, दायीं सूंडऔर चर्तुभुज
भगवान कान गणेश एक दंती हैं। मुंह के बराबर बड़े कान हैं। दायीं सूंड है। सूंड में मोदक है। लंबोदर के चार भुजा हैं। एक हाथ में फरसा व दूसरे में मोदक है। दो हाथ आसन मुद्रा में हैं। गणेश की प्रतिमा के साथ मूषक भी है। बाल रूवरूप की यह प्रतिमा आसन मुद्रा में बैठी हुई है।
कान में कहते हैं मनोकामना
कान गणेश मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना गजानंद के कान में कहते हैं। पुजारी के अनुसार, श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और श्रद्धा है कि कान गणेश के कान में कही गई मनोकामना की पूर्ति जल्द होती है। यहां गणेश के कान में अपने मन की बात कहने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं श्रद्धालु लगातार 21 बुधवार मंदिर में फेरी भी लगाते हैं। विवाह, संतान प्राप्ति, नौकरी, नवग्रह शांति के लिए भगवान कान गणेश का दर्शन-पूजन करते हैं।